गर्त में दबे-दबे हुए ……… गर्त से मोहब्बत हो गई ,
गर्त में दबे-दबे हुए ……… गर्त की इबादत हो गई ।
अब दम नहीं घुटता मेरा ……… इस गर्त के दीवारों में ,
अब दिल नहीं फटता मेरा ……. जब कोई पूछता गर्त इशारों में ,
क्योंकि गर्त ही तो अब मेरे …… जीने का सहारा बन गई ,
गर्त में दबे-दबे हुए ……… गर्त से मोहब्बत हो गई ।
कभी-कभी दिल रोता है ……… अपनी बेबसी के नज़ारों पे ,
ये चाहता है कि गर्त चीर दूँ ……… अपने हौसले की तलवारों से ,
मगर गर्त धीरे-धीरे से बढ़ा कदम …… मेरी ज़िंदगी बिखेर गई ,
गर्त में दबे-दबे हुए ……… गर्त से मोहब्बत हो गई ।
मैंने चाहा नहीं था कभी भी ……… गर्त का एक ऐसा महल ,
फिर क्यूँ बन गया ये अपने आप ही ………ढाने मुझ पर एक कहर ,
मुझे गर्त चारों ओर से घेर अब …… अपने अंदर समेट गई ,
गर्त में दबे-दबे हुए ……… गर्त से मोहब्बत हो गई ।
जब भी दिल मेरा मुड़ के देखे ……… अपनी ज़िंदगी वीरानों में ,
तब सोच के हैरान हो कि कैसे ………पहुँच गया ये शमशानों में ,
जहाँ गर्त ही गर्त मुझे …… चारों ओर से लपेट गई ,
गर्त में दबे-दबे हुए ……… गर्त से मोहब्बत हो गई ।
एक हाथ आकर थामता ………अक्सर मेरी ज़िंदा लाश को ,
मुझे खींच बाहर सँवारता ……… देता खुशियाँ , छुपा एक राज़ को ,
मगर वो गर्त बेरहम मुझे …… बेरहमी से फिर पीछे धकेल गई ,
गर्त में दबे-दबे हुए ……… गर्त से मोहब्बत हो गई ।
कभी-कभी ये गर्त मेरे ………तन को बहुत जलाती है ,
तब आँसुओं के ढेर में ……… मेरी हस्ती मिटती जाती है ,
और ये गर्त तब मेरी बेबसी पर …… और गर्त अपनी फेंक गई ,
गर्त में दबे-दबे हुए ……… गर्त से मोहब्बत हो गई ।
गर्त को अपनी नियति मान ……… अब मैं गर्त में ही रह जाती हूँ ,
और गर्त की दीवारों में ……… चुपचाप से सो जाती हूँ ,
ये गर्त मुझे नींद में सुला …… तब गर्त और चढ़ा गई ,
गर्त में दबे-दबे हुए ……… गर्त से मोहब्बत हो गई ।
गर्त में दबे-दबे हुए ……… गर्त से मोहब्बत हो गई ,
गर्त में दबे-दबे हुए ……… गर्त की इबादत हो गई ।।
***