ख़ंज़र दिल के आर-पार कर …… वो पूछते हैं कि “गुस्सा हो” ?
बेवजह दिल को तार-तार कर …… वो पूछते हैं कि “गुस्सा हो” ?
चले थे वो उस रोज़ बड़े ……. हमदर्द बनने हमारे ,
कहते थे संग मेरे चलो तुम ……उस फलक पर , जहाँ दिखते हैं सितारे ,
फ़िर उसी फ़लक से गिरा के ज़मीं पर …… वो पूछते हैं कि “गुस्सा हो” ?
ख़ंज़र दिल के आर-पार कर …… वो पूछते हैं कि “गुस्सा हो” ?
एक औरत की बेवफ़ाई का गम ……. बना गया उन्हें आफ़ताब ,
अब हर औरत उन्हें लगने लगी ……देखो ना , इस मुल्क में ख़राब ,
कसूरवार बेवज़ह ठहरा हमें …… वो पूछते हैं कि “गुस्सा हो” ?
ख़ंज़र दिल के आर-पार कर …… वो पूछते हैं कि “गुस्सा हो” ?
घायल मन भी हमारा रो पढ़ा था ……. उस रोज़ उनके जुमले से ,
हम क्या समझ रहे थे उन्हें ……वो क्या निकले , देखो हौले से ,
अब गर भूलने लगे हैं उन्हें …… तो वो फिर पूछते हैं कि “गुस्सा हो” ?
ख़ंज़र दिल के आर-पार कर …… वो पूछते हैं कि “गुस्सा हो” ?
ये हमारी फितरत नहीं ……. अनजान चेहरों से दिल लगाना ,
ये हमारी फितरत नहीं ……. अनजान चेहरों के संग वक़्त बिताना ,
हमारे वक़्त को बरबाद कर …… वो पूछते हैं कि “गुस्सा हो” ?
ख़ंज़र दिल के आर-पार कर …… वो पूछते हैं कि “गुस्सा हो” ?
अपनी इस छोटी सी एक भूल से ……. वो ले आए धर्मों का बैर ,
हम अनजाने में कह गए उन्हें ……. कि उनके धर्म का ही है , ये कहर ,
अब फिर से हमें बहलाने को …… वो पूछते हैं कि “गुस्सा हो” ?
ख़ंज़र दिल के आर-पार कर …… वो पूछते हैं कि “गुस्सा हो” ?
खंज़र सोच के मारा जो होता ……. तो नहीं होती आज ये दूरियाँ ,
तब क्या पता हम दोनों मिलके ……. रचते कई नई शोखियाँ ,
अपनी इस भूल को सुधारने के लिए …… वो पूछते हैं कि “गुस्सा हो” ?
ख़ंज़र दिल के आर-पार कर …… वो पूछते हैं कि “गुस्सा हो” ?
चलो अब देते हैं ज़वाब हम ……. तुम्हारे भी उस सवाल का ,
कि जुड़ता नहीं है वो दिल कभी भी ……. जो टूटता बेज़ार सा ,
इसलिए मत पूछिए आप हमसे यूँ बार-बार …… कि “गुस्सा हो” ?
ख़ंज़र दिल के आर-पार कर …… वो पूछते हैं कि “गुस्सा हो” ?????
***