This Hindi poem highlights the recent flood devastation in Kedarnaath temple and assume the cause of such calamity as the people are now a days disgracing their religion with the consumption of liquors
कुदरत का बरसेगा ऐसा कहर …
ऐसा होगा अत्याचार ,
चारों ओर मचा था हाहाकार …..
हाय मेरा प्यारा “केदार” ।
ना बचा भगवान ….ना ही इंसान ,
कुछ क्षणों का था वो तूफ़ान ,
बह गए ना जाने कितने लोग …..
करने गए थे यात्रा जो चार धाम ।
बह गए घर रेत में लाखों …..
डूब गए जो बसते थे उनमे रातों ,
रोके न रुका वो तूफानी सैलाब ,
हाय मेरा प्यारा “केदार” ।
जो सब कभी फिल्मो में देखा ….
उसे सामने अब तठस्थ मूक बन देखा ,
क्यूँ ना रोक सकी मैं वो बहती किताब ,
जिसमे बसते थे प्राण बेहिसाब ।
लाखों की थी चीख पुकार ….
लाखों अश्रुओं की बहती धार ,
हर-हर गंगे ये कैसा तेरा प्यार ,
हाय मेरा प्यारा “केदार” ।
“केदारनाथ” में बसते हैं भगवान …..
ऐसा मानते हैं सब इंसान ,
लेकिन अब तो वही बना शमशान …
क्या सच में होते नहीं कोई भगवान ?
हिमालय की वो ठंडी हवाएँ …..
वो बर्फ से ढकी ऊँची शिलाएँ ,
सब बन गयी दो पल में बहती धार ,
हाय मेरा प्यारा “केदार” ।
सेना चली है मलबा हटाने ….
उसमे दबे लोगों को बाहर लाने ,
ऐसा वीभत्स नज़ारा देखा जब पहली बार ….
तब मुँह से निकला …..हाय मेरा प्यारा “केदार” ।
हर राज्य के मंत्री लगे हैं राहत पहुँचाने …..
उनको जो अपने घर से हुए हैं बेगाने ,
पर क्या कभी भूल सकेंगे “वो” …..वो बहती धार ?
हाय मेरा प्यारा “केदार” ।
ये धर्म का अनादर था शायद …..
जो हज़ारों “शराब” की बोतलें पड़ी हुई मिली हैं वहाँ ,
इस तरह से पूजा गर भगवान को …..
तो क्या बुरा हुआ ……जो आया ऐसा वहाँ बाड़ का तूफाँ ।
हाँ ,हम फिर से “केदार” बसाएँगे …..
नए सिरे से उसमे एक मूरत बिठाएँगे ,
मगर इस बार नहीं आने देंगे वो झूठी बहार ….
हाय मेरा प्यारा “केदार” ।
हिम्मत और साहस ही है ……अब एक कठिन इम्तिहान ,
जब अपनी निडरता की हम दे पहचान …..
कुदरत के आगे चल न सका जब कोई ज़ोर …..तब ये मान ,
कि नियति ही होती है ……जो बनती सबसे बलवान ॥
***