हौसलों को लगाकर पंख ,
हौसलों का जूनून लिए ,
चल पड़े हैं हम उधर ,
जिधर इस दिल को सुकून मिले ।
हौसलों के टूटने पर ,
एक दर्द अक्सर चीखता ,
हर पल उदासी की चादरों से ,
खुद को खुद में ही खींचता ।
मेरे हौसले बेदर्द से ,
जब कुचलते किसी के तीरों से ,
तब ये आँखें भीग कर ,
पूछती फिर तकदीरों से ।
कि क्या मेरे हौसलों को कभी भी ,
कोई दिशा ना मिल सकेगी ,
और गर दिशा मिलेगी तो ,
मरते दम तक क्या वो यूँ ही जिएगी ?
कोई फर्क नहीं पड़ता है अब ,
चाहे हार हो या जीत हो ,
बस हौसले अपने सदा ,
हर निशाने पर सटीक हों ।
मेरा हौसला हर बार कहता ,
भूल जा वो बीता नज़ारा ,
जिसमे खाई थी बहुत गहरी ,
मगर अब है सिर्फ एक ख़ुशी ही यारा ।
बढ़ चलो उस रौशनी में ,
जहाँ अब नई एक डगर दिखे ,
उस डगर को पार करके ,
समेट लो थोड़े से और हौसले ।
ना जाने किन कठिनाईओं से ,
अब नया ये फिर मुकाम आया ,
लिखने को इतिहास में कुछ उपलब्धियाँ ,
फिर ज़ुबाँ पे किसी के मेरा नाम आया ।
उस नाम की ही आन में अब ,
मेरे हौसले इतने बुलंद हो ,
कि चीर सके वो कलेजा किसी का ,
जिनकी नीयत में कोई खोट हो ।
हौसले हर रोज़ जीते ,
हौसले हर रोज़ मरते ,
मगर दिल वाले अपनी फिर भी ,
नए हौसले से उड़ान भरते ।
क्या हुआ जो एक हौसला ,
कभी था गिर के कुचल गया ,
लेकिन अब एक और हौसला ,
आगे बढ़ा और सीढ़ी चढ़ गया ।
इसलिए इन हौसलों को ,
तुम भी सदा गले से लगाना ,
ये ही वो कल का भविष्य है ,
जिनसे तुम्हे है पूरी जंग जिताना ।
हौसले परस्ती पर ,
हर हौसला बुलंद हो ,
एक नई राह को ढूँढने तब ,
नए हौसले का जन्म हो ।
मैं हौसले से ही तो अब तक ,
यहाँ तक दौड़ी आई हूँ ,
अपने हौसले को नमन कर ,
तुम्हारे हौसले को सराह पाई हूँ ॥
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