आई आई टी – कानपुर -टी – शॉप
आई आई टी – कानपुर की है अपनी एक टी – शॉप ,
ऍम टी सेक्शन के समीप है यह विख्यात टी – शॉप,
हॉल फॉर एवं गायत्री मंदिर से ,
कुछ कदम दूर में बस्ती यह टी – शॉप,
खोखे नुमा २-3 चाय की दुकान है, टी – शॉप,
प्यार से आईआईटीएंस पुकारते इसे,
ऍम टी सेक्शन टी – शॉप l
चाहे अतिव्यस्त सुबह हो ,
इंस्टीटूट मिडसेम परीक्षा की ,
या टेककृति ,उदघोष एवं अन्तराग्नि की ,
स्वर्णिम शाम हो ,
पाएंगे आप इसमें पकौड़ों, समोसों ;
जलेबी का झमाल – बेमिसाल l
विंगमेट एवं लैबमेट की ,
विद्यार्थियों एवं शिक्षकों की ,
गहरी चाय की चुस्कियों को ,
टी शॉप ने जिया है बरसों से ,
डाटा अनसंग हीरोज का,
स्टोर्ड इसकी सांसों में ,
सेम्सटेर ड्राप की कसक ,
निरंतर गिरता सी पी आई का डर ,
आशिकों की अनकही व्यथाएँ ,
क्या क्या न जाने ,
छुपा है इसके जादू नुमा झोले में l
इसीलिए टी शॉप की चाय की चुस्कियों में,
झलकते सिग्नेचर आईआईटियन्स के ,
अपरोक्ष इतिहास लिखती ये आई आई टी शॉप ,
इसीलिए आईआईटियन्स में इसका विशेष स्थान – अधिकार l
इसकी हवाओं ने ,
संवारा कितनी आत्माओं को ,
जो सुबह के कमल की ,
तरह खिलकर बसें हैं ,
अब संसार के कोने कोने में ,
जब लौट के अलुमिनी आई आई टी -के आते ,
ऍम टी टी शॉप के समोसे बिना खाये ,
कभी घर ना जाते l
वॉर एंड पीस जैसा ,
मेन्यू है टी शॉप का,
न कोई आडंबर ,बस सीधी- सीधी;
पत्ती उबलती चाय ,
फिर भी भाव सहज से,
नतमस्तक हो पड़ोस – मंदिर में ,
सभी आई आई टीयन्स सहर्ष पीते चाय l
नव वर्ष
वह देखता था, दिखाता था;
वह दौड़ता था, दौड़वाता था;
वह हँसता था, हँसवाता था;
वह लिखता था, लिखवाता था;
वह बहकता था, बहकवाता था;
वह चलता था, चलवाता था;
वह उठता था, उठवाता था ;
वह खिलता था, खिलवाता था;
वह खाता था, खिलाता था;
वह सुनता था, सुनवाता था;
वह झगड़ता था, झगड़वाता था;
वह धकेलता था, धकेलवाता था;
वह चिढ़ता था, चिढ़वाता था;
वह सोचता था, सुचवाता था;
कहाँ गया वह मेरा पुराना वर्ष, मेरा दोस्त ;
जो यह सब कुछ करने पर भी;
कुछ ना करने का एहसास दिलाता था;
अब मैं समझ गयी;
वह मेरा प्यारा दोस्त, बीता वर्ष 2016;
असल में मुझे नए साल 2017 की,
मुबारिक देना चाहता था;
मुबारिक देना चाहता था ।
Sukarma Rani Thareja
Alumnus IIT-K(1986)
Associate Professor(retired)
CSJM Kanpur University
UP,INDIA