This Hindi poem is about the journey of water drops, converting into a flowing river which becomes lifeline for millions of human beings. The same people are polluting it to endanger their own survival. There comes the call to change the attitude before it is too late…
जल की बूँदें और जीवन
बूँदें जो बनकर पसर जाती हैं,
क्या चोंच में समां पाती हैं?
क्या प्यास बुझा पाती हैं?
क्या जीवन सरस बना पाती है?
सूरज की तपिश सोखती सागर को,
जल वाष्प बन बादल बनता ,
अल्हड शोख जवानी जैसी ,
झूमता , दौड़ता छा जाता।
गिरी – श्रृंगों पर अठखेलियां करता ,
गाता – नाचता, शोर मचाता ,
पेड़ों की शाखों को नहलाता ,
शिलाओं से टकराता , राह बनाता।
उतरता नीचे मैदानों में ,
जीवन – जल बन जाता ,
अमृत – पावन- कलश,
उड़ेलता, सरस बनाता।
जल जीवन का राग सुनाता ,
गाता, मृदंग बजाता,
शहनाई की टेर सुनाता ,
यमुना- तट पर लहराता,
कदम्ब छाओं में सुस्ताता,
कृष्ण की वंशी सुनने आता।
ताल – तलैया को भर जाता ,
कृषक – कार्य में हमें लगाता,
धरा अन्न से परिपूर्ण हो ,
मानव – जीवन पोषित करता।
हृषिकेश में गंगा – जल बन,
हर की पौड़ी को है धोता ,
प्रयाग – राज में बनी त्रिवेणी ,
बनारस के घाटों में भर जाता।
आगे बढ़ता पटना होकर,
सुल्तानगंज में उत्तरायण होता,
बढ़ता जाता, अलमस्त चाल में ,
सगर-पुत्रों का उद्धारक बनता।
यह जल क्यों दूषित हो चला ,
मानव तूने क्या कर डाला ,
अमृत का घट तेरे पास था ,
तूने उसमें विष भर डाला।
अपना कचरा न सका संभाल ,
डाल दिया इस पावन तट पर,
सूखती जा रही धार अमृतमयी,
कंकड़ – पत्थर घाट में भर – भर।
सूख गयी जो धार नदी की,
पसर गयी कचरे में फँस कर,
कैसे विहंग की चोंच चखेगी,
प्यासा रह जायेगा उर अंतर।
क्या इस जल की धार धरा पर ,
अतीत के पन्नो में ही दिखेगा?
यह पातक मानव तू सहेगा ,
तेरे ऊपर कहर गिरेगा।
अब भी बचा ले इस अमृत को,
अग्रिम जीवन को सिंचित कर,
पीयूष भरा अभ्यंतर हो,
जल से जीवन परिपूरित कर!!!
जल से जीवन परिपूरित कर!!!
***
–ब्रजेंद्र नाथ मिश्र
जमशेदपुर