कदम रुकते रहे बार-बार ……… घर की ओर जाने से ,
नादान मन ये कहे , कि तू चल वहाँ ……… जहाँ सुकून मिले तुझे , इस ज़माने से ।
उनके कड़वे शब्द ……. देते थे सुनाई बार-बार ,
कि हम बन गए हैं वो ……… जिसे ज़माना कहे जश्न~ ए ~ बहार ,
कदम सहमे से खुद को खींचें …… उस बस्ती के उजियारों से ,
कदम रुकते रहे बार-बार ……… घर की ओर जाने से ।
कभी दिल कहे कि तू भी कट जा ……. किसी गाडी के नीचे आकर ,
जहाँ रिश्तों में एक तकलीफ हो ……… वहाँ क्यूँ जियें फिर दिल लगाकर ,
कदम लड़खड़ाकर के गुजरे …… उन सड़कों के गलियारों से ,
कदम रुकते रहे बार-बार ……… घर की ओर जाने से ।
एक बोझ सा मन के भीतर ……. तकलीफ देता था , क्या कहें ,
उनके सवालों का , कोई जवाब तब ना मिलता था ……… हम सच कहें ,
कदम गड गए उस ज़मीन में …… जहाँ आँसू गिरे थे , इन आँखों से ,
कदम रुकते रहे बार-बार ……… घर की ओर जाने से ।
नफरत सी हो गई थी तब ……. उस घर की चारदीवारी से ,
जहाँ दो पल की खुशियों के बाद ……… मिलें ताने इतने सालों से ,
कदम मिलते रहे बार-बार …… यूँही मिटने और मिटाने से ,
कदम रुकते रहे बार-बार ……… घर की ओर जाने से ।
क़दमों को देना ना आया ……. अपनी बेगुनाही का सबूत ,
क़दमों को कहना ना आया ……… कि वो नहीं गिरे थे , वो हैं मजबूत ,
कदम बेजुबाँ से रुके …… उनकी ज़ुबाँ के तानों से ,
कदम रुकते रहे बार-बार ……… घर की ओर जाने से ।
दिल टूटता है तो सबसे ज्यादा ……. क़दमों को तकलीफ हो ,
ये बढ़ते नहीं आगे तब ……… जब इनके ज़ख्मों में एक टीस हो ,
कदम छिलते रहे आर-पार …… उनके तानों के हथियारों से ,
कदम रुकते रहे बार-बार ……… घर की ओर जाने से ।
क़दमों का भी दिल होता है ……. ये उस रोज़ देखा पहली बार ,
जब क़दमों से भी रिसता था ……… क़दमों का लहू तार-तार ,
कदम इतने जले , इतने तपे …… उनकी दो धारी तलवारों से ,
कदम रुकते रहे बार-बार ……… घर की ओर जाने से ।
कदम रुकते रहे बार-बार ……… घर की ओर जाने से ,
नादान मन ये कहे , कि तू चल वहाँ ……… जहाँ सुकून मिले तुझे , इस ज़माने से ।
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