” पीके सच बोलते है लोग….
देखो , क्या फैयदा है मदहोशी का। “
” मैंने वो सब माँगा , जो आँखें कह न पायी …..
मगर वो सब झेला , जो आँखें देख न सके। .”
” तुम्हे भी जाना है मुझे छोड़ के एक रोज़….
युही नहीं होश खोने लगे है हम। “
” क्या कुछ भी सच था हमारे बीच ?
या
तुम अपने मज़े ले रही थी , और मैं अपने। “
” एक मोड़ ऐसा आने को है…
साथ ख़तम हो जाने को है …..
जब तक चल सको , साथ चलते रहो बेफिक्र
ना जाने फिर कौन किस ठिकाने पे हो …..
” कुछ अल्फ़ाज़ , कुछ ख़यालात। …..
एक लम्बी ख़ामोशी , और वोह अधूरी बात “
” प्यार का इज़हार करू या न करू ?
इसी कश्मकश को अगर वो समझ जाते तोह मज़ा आ जाता। “
” मुझे तो वैसे भी ज़माने से लड़ना ही था
पर तुमने टोक के , मेरी हिम्मत और बढ़ा दी। “
” यूँ तो कोई ख़ास औकात नहीं है मेरे सपनो की….
पर तुम्हे इतना बता दू , कि इन आखों में भी आसमान समां जाता है। “
” अगर वक़्त की नज़ाकत ना होती
तो तुम्हे फुर्सत से समझाता। “
” इश्क़ की कदर अब कहाँ ज़माने में
वार्ना वोह दिन भी थे
जब ख़त की खुशबू में ही
मेहबूब का एहसास छुपा होता था। “
” मन तो बहुत करता है नासमझी करने को
पर किसी तरह मन को ही समझा लेते है। “
” बहुत परेशान घूम रहे है सब
लगता है सबकी जान पहचान हो चुकी। “
” इरादों में नेक ख़याली ज़रूरी है
ताकि दिल में बैठे गुबार को रास्ता न मिले। “
” लगता है अब पड़ोस में कोई नहीं रहता
अब सब सिमट गए है अपने ही आप में। “
” मेरा यकीन तो कीजिये जनाब
मैं झूठ बहुत अच्छा बोलता हु। “
” ज़िन्दगी बर्फ के जैसी बीत गयी यूही
कुछ हवा ले उडी , तो कुछ आग। “
” मुझे उससे इस कदर मोहब्बत थी
रोज़ याद करता हु उसको भूल जाने की। “
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