मैं किस बात का गम करूँ ……… मेरी हर बात में गम की छाया है ,
मैंने सोचा था कि मैंने सब कुछ पाया ……… मगर मैंने कुछ भी ना पाया है ।
सूखे पत्ते सी ढल गई मेरी जवानी ………. अब ये बुढ़ापा आया है ,
मैं किस बात पे इस पर फक्र करूँ ……… इसके अंदर ही तो दोष समाया है ।
तमाम उम्र मैं भागा फिरा ………पाने जिसका नाम माया है ,
मगर ना पा सका सुख-चैन की दौलत ……… अब वो नाम भी पराया है ।
ग़मों के आने से पहले अक्सर ………. मैं सुखों को ढूँढा करता था ,
हर सुख में मैंने कामना को बढ़ाया ……… अब हर कामना में सुख के भय की छाया है ।
ये जीवन है एक मैली चादर ………इसको ढोने का यहाँ सुख है मिलता ,
मेरे ढोने में ही था दोष कहीं जब ……… तो फिर क्यूँ मैं कहूँ कि सब कुछ पाया है ।
मैं पाने चला था वो माया लुटेरी ………. वो मुझे ही लूट कर भस्म हुई ,
मैं किनारे खड़ा देखता रहा तमाशा ………मेरे हाथ अब कुछ भी ना आया है ।
गम और ख़ुशी के बीच खड़ा मैं ……… उस प्रभु की शरण में जा पहुँचा ,
उसके नाम में भी जब सुख ना मिला ……… तब अपने नाम को ही दोषी मैंने पाया है ।
मुझे पाने से ज्यादा अब खोने की चाह का ………. एकदम से ऐसा शौक लगा ,
कि मैंने जो कुछ भी पाया था ,वो सब धीरे-धीरे ………गरीबों में बंटवाया है ।
मेरे सब कुछ खोने पर , कुछ लोगों की दुआएँ ……… मेरे अंतर्मन के पार हुईं ,
मैंने सोचा था कि मैंने सब कुछ था खोया ……… मगर अब सब कुछ फिर से पाया है ।
मैं किस बात का गम करूँ ……… मेरी हर बात में गम की छाया है ,
मैंने सोचा था कि मैंने सब कुछ खोया ……… मगर मैंने सब कुछ पाया है ।।
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