Hindi Poem – A Lesson From Delhi Gangrape Victim
हाथ में तलवार थामे , बढ़ चलो ए सिंघनियों ….
चीर के सीना लहू से , खुद को “द्रौपदी” कहो।
युगों-युगों से चल रहा ,ये वेहशिओं का वेहशीपन ….
तूफ़ान उठ रहे हैं , रह-रह के अपने अंतर्मन ।
कोई “कृष्ण ” बचाने अब , न आएगा इस काल में …..
घोंप दो खंज़र तुम सीधा ,जो खींचे तुम्हे इस जंजाल में ।
बात “अस्मत” की है ,तो क्यूँ उसे हम … लुटने दें ?
लूटने पर उसी “अस्मत” को , वो हमें “मुजरिम” कहें ।
दोनों सूरतों में जब “मुजरिम “, बन गयी हैं नारियाँ ……
तो क्यों न सीना चीर दें , जब उनकी आयें बारियाँ ।
बहुत सहा …..सहते रहे , ज़ुल्मो-सितम मर्दों का हम …..
वक़्त कहता है कि बढ़ चलो , अब तुम भी दस कदम ।
जब है …..वही जिस्म ,वही जान ,वही सोच,वही शान……
फिर क्यों कहें हम खुद को , कि हम हैं उनके “गुलाम” ।
ये आपसी प्रेम का है रिश्ता , कोई जोर-ज़बरदस्ती नहीं ….
भूल क्यों जाता है “वो”, कि बिन हमारे …”उसकी” कोई हस्ती नहीं।
गर “वो” उठा सकता है “डंडा “, रौंदने को “हुस्न” को …..
तो हम उठा सकते हैं “खंज़र “, चीरने उस “दरिन्दे” को ।
याद करके उस “देश की बेटी ” का हश्र , ये सोच लो ……
कि “भगवान्” भी न आये बचाने ,इस कलयुग में उस “भक्त” को ।
फिर क्यों नहीं करते हम, अपनी सुरक्षा अपने आप से ?
थाम कर तलवार बढ़ चले , फिर लड़ने पाप से ।
युगों -युगों से नारी ने , जब-जब चंडी का रूप धरा …..
तब-तब इस पृथ्वी से , दुष्टों का अंत हुआ ।
द्रौपदी ,दुर्गा और काली , बनकर फिर जीना है हमको ….
यूँ घुट-घुट कर खून के आँसू , नहीं पीना है हमको ।
बीसवीं शताब्दी की नारी ने ,किया अब ये ऐलान है …..
कि बलात्कारी को सज़ा देना , अब सिर्फ “नारी-संगठन” का काम है ।
मत करो किसी राज्य या देश से ,”बलात्कारी” को सज़ा देने की Appeal …..
ये “हिन्दुस्तानी सरकार” है , यहाँ बस वही करो …जो एक आत्मा की हो Feel .
A Message to Females-
Molestation and Rape are Feminist curse,
So Be Strong and Bold to fight ……before it goes worst.