लिखते हैं तो ये ज़माना बदनाम करता है ,
ना लिखें तो ये ख्याल ,
पूछते हैं तो ये जवाब परेशान करते हैं ,
ना पूछें तो ये सवाल ।
लिखने की लत ने ऐसा हमें आबाद किया ,
कि सारी तन्हाई को पल में साफ़ किया ,
लिखना एक गहराई है , एक लेखक की सच्चाई है ,
फिर क्यूँ लिखने पर लोगों ने ऐसा सवाल किया ?
लिखते हैं तो ये ज़माना बदनाम करता है ,
ना लिखें तो ये ख्याल ……….
कभी लिखी एक मन की तस्वीर , तो कभी एक जिस्म की तक़दीर ,
कभी उसके और अपने मिलन की सच्चाई ,
तो कभी हम दोनों की दर्द वाली जुदाई ,
तब भी लोगों ने सब पढ़कर हमें और श्राप दिया ।
लिखते हैं तो ये ज़माना बदनाम करता है ,
ना लिखें तो ये ख्याल ……….
एक औरत की कलम से लिखी कामुक बातें ,
क्यूँ मर्दों से हज़म होती नहीं वो रातें ,
क्यूँ मर्द ही लाते सदा कामुकता का संसार ,
क्यूँ औरत नहीं लिख सकती कामुकता को बीच-बाज़ार ?
लिखते हैं तो ये ज़माना बदनाम करता है ,
ना लिखें तो ये ख्याल ……….
कुछ चेहरों ने हमें ऐसे रोका ,
कि हमें दोस्त बंनाने से भी , उनके प्रोफाइल में लोचा ,
तब एक औरत ही बन गई एक औरत की दुश्मन ,
चाहे कामुकता का वो खुद करती हो , पूरा विचरण ।
लिखते हैं तो ये ज़माना बदनाम करता है ,
ना लिखें तो ये ख्याल ……….
कोई कहता कि तुम लिखतीं रसीली बातें ,
कोई कहता कि मेरे संग लिखो , और अतरंग रातें ,
कोई चाहता कामुकता का नया एक रूप ,
कोई चाहता कामुकता की सिर्फ थोड़ी धूप ।
लिखते हैं तो ये ज़माना बदनाम करता है ,
ना लिखें तो ये ख्याल ……….
कामुकता कोई अपराध नहीं है ,
उसे शब्दों में पिरोना कोई पाप नहीं है ,
उन लाख चेहरों से हम फिर भी बेहतर ,
जो असली चेहरों पर लगाते नकली चेहरे का प्लस्तर ।
लिखते हैं तो ये ज़माना बदनाम करता है ,
ना लिखें तो ये ख्याल ……….
एक लेखक के मन की कोई सीमा-रेखा नहीं है ,
वो लिखता वही , जो घटना उसके जीवन से जुडी है ,
जाने-अनजाने में लिखी गई कुछ बातें ,
खड़ा कर देती हैं उसको एक श्रेणी में लाके ।
लिखते हैं तो ये ज़माना बदनाम करता है ,
ना लिखें तो ये ख्याल ……….
हाँ , मैंने कामुकता को अपने लेखन में शामिल किया ,
हाँ , मैंने भी श्रृंगार रस से अपने लेखन को रस दिया ,
और अब मैं पूछती हूँ ज़माने से ,
कि क्या है कोई ऐसा , जो रह सकता है बिन तराने के ??????
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