माँ
जिसने संसार की रचना की उसकी तारीफ किन शब्दो में मैं बयाँ कर सकती हूँ| यह महज एक प्रयास है और उन हर माँ को एक धन्यवाद है जिन्होने अपने बच्चो के लिए अपना जीवन दे दिया|
ममता की सी मूरत है उसकी
चाहत ही उसका गहना
हार पायल से बढ़ती तेरी चमक
उससे तो सजे यह अंगना
गुस्से का प्रतीक बना कभी तू
कभी बना भैरव
कभी रावण बना तू
तो कभी कंस का तूने रूप लिया
दुख तो यह है की
कभी बन ना सका तू पांडव
जो अपनी अर्धांगिनी के लिए
शुरू करे एक महाभारत
ममता की एक मूरत खड़ी है देखो
फिर से बनी वो द्रौपदी
खीच ले सारी
लगा ले दाँव माँगे फिर भी तेरी ज़िंदगी
मानवता का चेहरा लेके
राक्षस ही बना तू
इंसान की वेश भूषा में सजी
माँ को ना पा सका तू
है संसार यह यूँ ही क्यूँ
दैत्य यहाँ भरे है
देव का ख़त्म है अस्तित्व ये यूँ
देखो उसका आँचल अब तो
डूबा है आँसू में फिर भी
पोछे उसी आँचल से तेरे पसीनो को वो
खेत में ज| के मेहनत तू करे तो
लड़ी है वो भी तो
रण में हारा है तू जब जब
आँसू भी बहे उसके तब तब
फिर भी लगा रहा है अब तू उसी पे यूँ निशाना
माँ की ममता की सूरत को तू
कभी ना जान पाना
एक दिन उसी ममता को लपेटे देखेगा तू
सफेद उसी लिबास में
लाल रंग सी पवित्रता थी जो उसमे
बस ना पाई उस माँ के लाल में यूँ
फिर भी खड़ी है देख ले तू
सफेद से लिबास में
आँसू जो भी बहेंगे तेरे
वो ले जाएगी दाह संस्कार में
माँ की ममता है यूँ उँची
क्या मैं उससे बता सकूँ
इन्सा अगर है तो अब तू
अपनी माँ
का अब तो कुछ ख़याल दे
वक़्त ना गुज़रे यूँ ही कहीं ना
यूँ ही रह जाए तू अकेला
ममता से सीख ले सब कुछ
जैसे गुरु से चेला
जैसे गुरु से चेला
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