मां, एक पहेली!
क्यूँ मुझे छोड़ कर चली गई तुम,
इसका कारण तो मैं जानती नहीं।
कहते हैं लोग कि ‘अनाथ हो तुम ‘,
लेकिन इस बात को मैं मानती नहीं।
ऐसे ही क्यूँ चली गई मां?
क्यूँ नहीं रखा मुझे अपने करीब?
हो सकता है तुम्हारी कोई मजबूरी हो,
पर क्या यही है अब मेरा नसीब?
मां मैं हमेशा सोचा करती थी,
तुम होती तो ऐसा होता,
तुम होती तो वैसा होता।
मां तुम सामने क्यूँ नहीं आती?
अपना चेहरा क्यूँ नहीं दिखाती?
बाहें फैलाए खड़ी हूँ मैं,
मुझे गले से क्यूँ नहीं लगाती?
अकेले बैठी रोती हूं मैं मां,
तुम्हारे इंतजार में जीती हूँ मैं मां।
कि एक दिन तुम आओगी,
अपने हाथों से खाना खिलाओगी।
मेरे बालों को प्यार से सहलाओगी,
मुझे मीठी लोरियाँ गाकर सुलाओगी।
पर तुम तो कभी आती ही नहीं,
अपने फर्ज़ तुम निभाती ही नहीं।
जब तुम्हारे साथ के लिए तडपती हूँ मैं,
हाथ मेरा तुम थामती ही नहीं,
शायद प्यार भी मुझसे तुम करती नहीं।
आखिर मेरी गलती क्या थी?
क्यूँ तुमने मुझे ऐसी सज़ा दी?
मुझे ताने मारने के लिए तुमने,
क्यूँ ज़माने को ये वजह दी?
मैं क्यूँ सुनूं सबके ताने?
तुम ही नहीं आई मुझे अपनाने।
एक बार आकर कह देती ना,
कि तुम चाहे जहाँ हो,
तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी मां हो।
जब संभालना ही नहीं था,
तो मुझे जन्म ही क्यूँ दिया?
हरदम सताती है तुम्हारी याद मुझे,
पर तुमने तो कभी मुझे याद ही नहीं किया!
याद अगर तुम करती मुझे,
अब तक मिलने आ जाती।
एक बार मुझे गले लगाकर,
अपनी मजबूरियाँ समझा जाती।
कभी कभी तो नफ़रत होती है तुमसे,
क्यूँ हो गई तुम इतनी खुदगर्ज़?
मुझे बेसहारा छोड़ गई यहाँ,
क्यूँ नहीं निभाए अपने फर्ज़?
शायद तुम इस दुनिया में हो ही नहीं,
होती तो मुझे अकेला ना छोड़ देती।
कोई भी मां इतनी निर्दयी नहीं होती,
कि अपने बच्चे से ही मुंह मोड़ लेती।
इस तस्वीर में ही बसी अब तुम्हारी यादें हैं,
क्यूँकि अब मेरे कुछ अलग इरादे हैं।
इन झूठी उम्मीदों से मुझे उबरना होगा,
सच का सामना तो अब मुझे करना होगा।
पता नहीं तुम सुन भी रही हो या नहीं,
पर आज तुमसे एक वादा करती हूँ।
मेरे जीवन को तुमने जो शुरुआत दी है,
उसे तो मैं कभी बदल नहीं पाउंगी।
पर तुम इतना ज़रूर याद रखना मां,
अपनी किस्मत को मैं ज़रूर बदल के दिखाऊंगी।
अपनी किस्मत को मैं ज़रूर बदल के दिखाऊंगी।
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