मछली को जल पिलाने चले !
उठे जब एक रोज़ हम ,बड़ी लम्बी -गहरी नींद से ,
देखा फिर अपने आस पास ,यूँ ही कुछ देर ख़ामोशी से ,
देख कर एक अजीब सा माहौल ,
अटपटी सी चीज़े , हम हैरत मे पड़ गये !
‘क्या हो गया लोगों को ,क्या हो रहा दुनिया में ,
यह सोचकर , हम अचरज से भर गये !
कैसे बदले यह सब ? हम यूँ ही सोचने लगे ,
सब ठीक करने की हसरत में ,
हम एक “ज्ञानी जी” से जा मिले !
हमारी अंतर व्यथा सुन वे “ज्ञानी जी”,
बड़ी गंभीरता से बोले ,
“मछली को जल पिलाओ ,मन चाहा फल पाओ “,
बस फिर क्या था ,सब छोड़ -छाड़ कर हम ,
‘मछली को जल पिलाने चले !’
सबसे पहले हम किसी तालाब तक जाने के लिये ,
एक बस मे चढ़े ,
आँखों मे बदलाव की उम्मीद , मन में ‘क्रान्ति ‘ की
हसरत लिये ,हम एक कोने मे जा बैठे।
“चलो उठो यहाँ से !” तभी एक सज्जन ‘ऊपर ‘ से
बोल पड़े; “क्यूँ सरकार ?”,हम भी सवाल कर बैठे !
२ घूँसे और २ चांटो के बाद हम उनकी ‘श्री वाणी ‘ सुन सके ,
“यह सभी सींटे आरक्षित है। इनपर तुम नहीं बैठ सकते “,
वो बड़ी दयालुता से बोले ,
“पर अभी तो बस में कोई नहीं हैं ,जब कोई आयेगा
हम उठ जायेंगे “,हम तर्क कर बैठे !
इस बार 4 घूँसो और 4 चांटो के बाद हमें उनकी श्री वाणी सुनाई दी –
“नियम नियम होते हैं ,हिसाब से चलना हैं तो चलो,
वर्ना उतर पड़ो “,वो अड़ गये ,
हम आशाओं के मारे ,बेचारे ,उठ खड़े हुये ;
तो इस तरह सब छोड़ -छाड़ कर हम ,
एक खाली बस में खड़े -खड़े ,
सब ठीक करने की चाहत मे हम ,
‘मछली को जल पिलाने चले !’
अपने इस सफर मे हम ,फिर एक जगह रुके ,
पानी तो ले लें मछली के लिये ,
सोचकर एक ‘काँच -महल ‘ में जा घूसे ,
उस काँच महल में फिर हम पानी खरीदने चले ,
दुकानदार ने हमें तेरह (13 ) तरह के पानी बतायें ,
हम ‘मूर्ख बेचारे ‘ एक मे भी अंतर ना समझ पाये ,
ग़फ़लत मे पढ़ हम आखिर चकरायें ,
सबसे अच्छा कौनसा हैं ?, सर आप ही बतलायें!
उन्होंने फिर चौदहवें तरह का पानी निकाला ,
कहा “यह लो ,सबसे अच्छा पानी हैं यह ,
मात्र 999 रुपयें मे लें जायें !”
“999 रुपयें मे एक बोतल !”,हम चोंक कर बोले ,
“आखिर क्या हैं इसमें इतना खास ,ज़रा यह तो बतायें ?”,
“खास अरे यह पानी हैं बेहद खास ! इसे पी कर काला गौरा
हो जायें ,मोटा पतला हो जायें ,और तो और
इसे पीकर तो मुर्दा भी ज़िन्दा हो जायें !”,
“अरे भैया ,इसे पीकर कहीं हमारी मछलियाँ ही ना मर जायें !”,
“अगर एक भी मर जायें ,तो 10 करोड़ की नगद राशि लें जायें !”,
बस फिर क्या था ! सब छोड़ -छाड़ कर हम ,
हांथों में मात्र 999 रुपयें की पानी की बोतल लिये ,
सब ठीक करने की चाहत में हम ,
‘मछली को जल पिलाने चले !’
तालाब किनारे लगभग पहुँच ही चुकें थे हम ,
अरमान पूरे होते से लग रहें थे हमें ,
की तभी एक ‘भूरे से कपड़े पहनें ,हांथो में लाठी लियें ‘,
एक सज्जन आयें ,”कहाँ जा रहें हो ?कौन हो ?”,
सवाल करने लगे ;
हमने भी पूरी कहानी सुनाई ,साथ ही अपनी मछली को
जल पिलाने की मंशा भी बताई !
कहने लगे “यह सब तो ठीक हैं , पर यह बताओ
की क्या मछली को जल पिलाने की
तुम्हारे पास परमिशन हैं ?”
“नहीं वो तो नहीं हैं। “,हमने कहा ,
“वो जो ऑफिस दिख रहा हैं ना ,वहाँ ‘सूट -बूट ‘ मे
एक साहब होंगें ,जाओ पहले उनसे परमिशन ले
आओ ,फिर जी भर कर मछली को जल पिलाओ। “,
वो कहकर तालाब किनारे चल दिये ,
पहुँचे जब हम ऑफिस मे ,उन साहब से कहा –
“सर मछली को जल पिलाने की परमिशन दे दीजिये “,
उन्होंने झट से हमें 10 कागज़ दिये ,कहा –
“पहले इन 10 कागज़ों पर 10 अलग -अलग, लिखे हुयें
‘साहब लोगों के हस्ताक्षर करवा लिजियें !”,
फिर रोज़ हम नियम से उस ऑफिस को जाते ,
हाथ मे मात्र 999 रुपये की पानी की बोतल लियें ,
तालाब को चंद क़दमों की दूरी पर पाते ,
पर परमिशन ना होने के कारण कुछ ना कर पाते !
लेकिन आखिर कार हमारी तपस्या रंग लाई ,
पूरे 6 महीने मे हमने उन 10 साहब लोगों की साईन
जैसे -तैसे पाई !
अंततः हम उन साहब के पास गये और कहा –
“यह लिजिये हस्ताक्षर ,अब कृपया परमिशन दें। “,
उन्होंने कहा “साईन तो ठीक हैं पर ज़रा एक बात भी सुन लें “,
हमने बेफिक्र होकर कहा “कहें क्या कहना हैं ?”,
उन्होंने कहा “कानूनन मछली को जल पिलाना मना हैं !”,
हमने घबराकर कहा “क्यूँ ज़रा इतना तो बतायें ?”,
उन्होंने कहा “यह जानने के लिये आप ‘दिल्ली’ जायें !”,
हम बोले माफ़ करना साहब कोई और रास्ता बतायें ;
कुछ देर सोचने के बाद वो बोले ,”हमारे ऑफिस में
एक माताजी का मंदिर हैं ,वहाँ बस हज़ार का नोट चढ़ायें
और जहाँ जाना हैं जायें। “,
हम अपनी तपस्या व्यर्थ ना करने की चाहत मे
यह कदम भी उठा गयें ,माताजी के मन्दिर में हज़ार का नोट चढ़ा कर
तालाब किनारे आ गये।
देखा जब तालाब को हमने पर ,होश ही उड़ गये ,
“ना मछली मिली ना पानी ,
हमें मिली तो बस काली स्याही !”
पर हमने वहाँ भी हार नहीं मानी ,
पूरी करेंगें यह कहानी यह बात मन मे ठानी ,
और बस ,
सब छोड़ -छाड़ कर ,
आँखों मे बदलाओ की उम्मीद लिये ,
सब ठीक करने की चाहत मे हम ,
“मछली को जल पिलाने चले !”
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