मैं और ज़िंदगी
हैराँ हूँ मैं कि सब बदल गया है
कुछ भी अब पहले सा कहाँ है
ज़िंदगी की इस दौड़ में अब वक्त कहाँ है…
थक गया हूँ मैं इस दौड़ से
परेशाँ हूँ मैं इस भीड़ से
सोचता हूँ कि थम जाए ये पल यहीं
तो कुछ हसरतें मैं भी पूरी कर लूँ
जी भर कर साँस लूँ या रो लूँ…
चाहता हूँ मैं कि
आसमाँ में चमकते सितारे देख लूँ
समंदर में उठती लहरें देख लूँ
वो सुनसान किनारे देख लूँ
इस दौड़ में ढो रहा हूँ जिंदगी मैं
जो मिल जाए वक्त तो जीने की वजह ढूँढ लूँ
सोचता हूँ कि थम जाए ये पल यहीं
तो कुछ हसरतें मैं भी पूरी कर लूँ
जी भर कर साँस लूँ या रो लूँ…
पर…
जो थम जाए वो वक्त कहाँ है
जो गुज़र गए वो लम्हे अब कहाँ है
डर लगता है इस भीड़ में कहीं गिर न जाऊँ
जो गिर गया गर मैं
तो फिर दौड़ न पाऊँ …
हम सब उस भीड़ के हिस्से हैं
जिसके कई किस्से हैं
जो पूछे हमसे कोई कि हम कहाँ हैं…
सोचता हूँ कि कह दूँं…
हम वहाँ हैं भीड़ जहाँ है…
हैराँ हूँ मैं कि सब बदल गया है
कुछ भी अब पहले सा कहाँ है…
लबों पर हर वक्त इक खामोशी सी छाई है
दिल में कुछ है तो बस तन्हाई है
सहम गया हूँ मैं इस सन्नाटे से
परेशाँ हूँ मैं इस तन्हाई से
सोचता हूँ कि थम जाए ये पल यहीं
तो इन खामोशियों कि वजह ढूँढ लूँ…
गर थम जाए ये पल यहीं
तो कुछ हसरतें मैं भी पूरी कर लूँ
जी भर कर साँस लूँ या रो लूँ…
इस भीड़ में हम भी शुमार हैं
इस भीड़ का हमें भी खुमार है
न जाने मंजि़ल कहाँ हैै
जाना कहाँ है…
जो पूछे हमसे इस दौड़ की वजह कोई
सोचता हूँ कि कह दूँं…
बस यूँ ही चल निकले हैं
सामने रास्ता है और रास्ते पर हम हैं…
हैराँ हूँ मैं कि सब बदल गया है
कुछ भी अब पहले सा कहाँ है…
कुछ भी अब पहले सा कहाँ है…