1- “मन”
पल-पल ,हर पल ,प्रति पल कल-कल,
बहता है जल ,
चंचल मन चल, नवकल की तु ,
हलचल कर चल ,
चल सकल जगत, जल की भांति,
निश्छल बन चल ;
हर राह उमंग, मन बन चन्दन ,
तु वन-उपवन -कानन -जंगल पावन कर चल।
चल नभ-जल -थल, अचल मे तु ,
कलरव कर चल ,
ये तल-भूतल,अविचल-अविरल,
मन बन निर्मल,कर -कर प्रणाम सबको तु चल;
हे प्रकाण्ड गगन,तु मस्त- मगन,
नक्षत्र नवल,हर ग्रह विमल ,
तु बन तारा,गिर -गिर पर चल।
चल भोर तलक,कर निशा दमन,
मन हठ कर तु ,क्षण -क्षण में चल ,
ब्रम्हाण सकल तु उलट -पलट ,
मन प्रण कर तु ,कण -कण में चल ;
चल बढ़ मन तु ,हर रंग विहंग ,
नो रस में तु ,रम -रम कर चल।
ये सत्य -असत्य ,हे खेल जगत ,
बन ठन कर तु ,कुश्ती में चल ,
ये प्रेम लगन ,मंमता मंथन ,
सब भव बंधन ,तु कर खंडन ,
अंतर को चल ;
चल अंत-अनंत,अखंड-अमर ,
तर अटल -पटल पर चल ,
मन रोम -रोम कर रूद्र सकल ,
निर्भय हो तु,प्रलय तक चल,
निर्भय हो तु,प्रलय तक चल…..
2- “एक सवाल”
इस दुंनिया की किताब के पन्नो में ,
सवाल कई मिलते है;
हर सवाल एक राज़ ,
ये राज़ चुनोती लगते है ;
हर जवाब एक किस्सा ,
ये किस्से कहानी बनते है ,
इन जवाबो की कहानियो में फिर ,
कई सवाल नये मिलते है ;
इस दुनिया की किताब के पन्नो में ,
सवाल कई मिलते है।
कई सोचे गये ,कई समझे गये ,
कई पूछे गये ,कई सूझे गये ,
कई ढूंढे गये ,कई बूझे गये ,
फिर भी ना जाने कैसे ,
नये सवाल रोज़ मिलते है ;
इनके जवाबो की तलाश मे ,
सब लोग चला करते है ,
लोगों की बातों में फिर ,
कई सवाल नये मिलते है;
इस दुनिया की किताब के पन्नो में ,
सवाल कई मिलते है।
सवालो की इस कतार में ,
ख्वाब कई बनते है ,
खाव्बो की इस दुनिया में ,
फिर सवाल कई मिलते है ,
फिर इस दुनिया में ,
जवाबो के ख्वाब बनते है ;
इस दुनिया की किताब के पन्नो में ,
सवाल कई मिलते है।
अगर पूछ सकूँ मै भी ,
एक सवाल कभी ,
तो ये सवाल उससे पूछुंगा ,
कि तेरी सवालो की इस दुनिया में ,
आखिर जवाब कहाँ बसते है ?
बस ये जवाब कहाँ बसते है ?
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