मेरा बचपन बनाम चिया
जब मैं छोटा था , एक चिड़िया रोज मेरे घर आती थी…
सिर्फ चहचहाती, पर कुछ कह नहीं पाती थी…
कह तो मैं भी नही पाता था, क्योंकि में भी बहुत छोटा था…
उसकी बात समझ नहीं आने पर घंटो घंटो रोया था…
यू तो कुछ हम दोनों को बहुत अपना-पन सा लगता था…
क्योंकि न वो मुझे समझ पाती, ना में उसे समझता था…
थी तो बहुत नन्ही सी पर बहुत कुछ सिखाती थी…
वो अपनी बूढ़ी माँ का पेट भरने इतनी दूर आती थी…
वो सिर्फ चहचहाती, पर कुछ कह नहीं पाती थी…
पर आज आया समझ के क्या कहना चाहती थी…
मुझ पर क्या हँसता है , एक दिन तुझे भी यही नौबत आएगी…
जो माँ आज तुझे खिलाती है , उसे तेरी जरूरत पड़ जाएगी…
जब वो कही चल के दूर नहीं जा पायेगी…
उसी माँ को हर समय तेरे बचपन की याद आएगी…
तू तो एक दिन पढ़ के जरूर कहीं चला जायेगा…
पर जिस माँ ने तुझे अपने हाथों से खिलाया , उसको कौन खिलायेगा…
जब मैं छोटा था, एक चिड़िया रोज मेरे घर आती थी…
सिर्फ चहचहाती, पर कुछ कह नहीं पाती थी…
मैं हूँ नन्ही सी , पर बहुत जगहो पर दाना चुगने जाती हूँ…
कही माँ को बर्तन धोते, कही चूल्हा फूंकती पाती हूँ…
तुमसे अच्छे तो हम पंछी है , जिन्हें पढ़ाया नही जाता है…
पर जब बात हो चुनने की तो माँ का नाम सबसे पहले आता है…
हूँ नन्ही चिया पर एक बात मेरी याद रखना…
पैसो से कुछ नही होता अपनी माँ के प्यार को बचाये रखना…
जब मैं छोटा था, एक चिड़िया रोज मेरे घर आती थी…
सिर्फ चहचहाती, पर कुछ कह नहीं पाती थी….
जब मैं छोटा था, एक चिड़िया रोज मेरे घर आती थी…
सिर्फ चहचहाती, पर कुछ कह नहीं पाती थी…
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