This Hindi poem highlights the fate of an Indian wife where she was accepting that each and every activity of Her was related with Her Husband’s fate and she accepted the same as Her religion but at the same time she was confused about the religion of His husband as perhaps She expected something from Him too.
मेरा धर्म है उन्हें सँवारना ……… उनका धर्म मैं क्या जानूँ ?
मेरा धर्म है उन्हें निखारना ……… उनका धर्म मैं क्या जानूँ ?
सात फेरों की कसमें हैं मुझको निभानी ………. वो समझें या ना समझें ये जानी ,
मेरा धर्म है उन्हें सुधारना ……… उनका धर्म मैं क्या जानूँ ?
उनकी बेरुखी करती बेचैन ……… पल भर में हो जाते गीले ये नैन ,
मेरा धर्म है उनके संग की कामना ……… उनका धर्म मैं क्या जानूँ ?
उनके साथ जी के भी मरते हैं ………. हर रोज़ आहें भरते हैं ,
मेरा धर्म है उनके दर्द को बाँटना ……… उनका धर्म मैं क्या जानूँ ?
उनकी मार से भी करना है प्यार ……… चाहे लोग कहें इसे अत्याचार ,
मेरा धर्म है उनके पौरुष को बघारना ……… उनका धर्म मैं क्या जानूँ ?
उनकी जी हुज़ूरी को गले लगा ………. मैंने छोड़ दी अपनी लालसा ,
मेरा धर्म है उनके कदमो को नापना ……… उनका धर्म मैं क्या जानूँ ?
उनके बिस्तरों की सेज़ बन ……… मैं बुझा ना पाई अपनी प्यासी अगन ,
मेरा धर्म है उनकी तपन को निखारना ……… उनका धर्म मैं क्या जानूँ ?
उनके संग तड़पूँ मैं दिन और रात ………. फिर भी जा ना पाऊँ अपनी मर्ज़ी से कहीं आप ,
मेरा धर्म है उनके आदेशों को मानना ……… उनका धर्म मैं क्या जानूँ ?
उनके प्यार की मैं रहमोकरम ……… वो बुरा कहें तब भी नहीं कोई गम,
मेरा धर्म है खुद में अवगुण छाँटना ……… उनका धर्म मैं क्या जानूँ ?
उनकी खामियों को गले लगा ………. मैं ढूँढती रही खुद में खामियाँ सदा ,
मेरा धर्म है उनके आगे दूँ ये सर झुका ……… उनका धर्म मैं क्या जानूँ ?
मेरा धर्म है मुझसे बँधा ……… क्योंकि हूँ मैं शायद एक बददुआ ,
मेरा धर्म कहे तू बनेगी एक दिन एक कथा ……… उनका धर्म मैं क्या जानूँ ?
मेरे धर्म में नारीत्व छुपा ………. उनके धर्म में एक पुरुषत्व है ,
मेरा धर्म भी बनता एक अधर्म है ……… उनका धर्म मैं क्या जानूँ ?
उनके धर्म की रक्षा की खातिर ……… मैंने धर्म अपना बेच दिया ,
फिर भी मेरा धर्म है हर पल उन्हें सँवारना ……… उनका धर्म मैं क्या जानूँ ??
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