Mera Mann – Hindi poem describing state of mind before and after love. Before love she found her mind under control but after love it became out of control.
जब मेरा मन मंथन करने लगा ,
तब नफरत सी हो गयी ……दुनियावालों से ।
जब मेरी साँस मंथन करने लगी ,
तब नफरत सी हो गयी …..चंद सवालों से ॥
हर रोज़ “मैं” …..अपने मन के भीतर ,
झाँकती हूँ पाने को सुकून अक्सर ,
जब मेरा सुकून मंथन करने लगा ,
तब नफरत सी हो गयी …….कई बहानो से ॥
लोग कहते हैं …..”मन” आइना है चेहरे का ,
उस पर छपती है हर लकीर …..मन के भावों की ,
जब उन भावों को मंथन मैं करने लगी,
तब नफरत सी हो गयी ….. हर चेहरे से ।
मेरा “मन” हर रोज़ बहका ……क्यूँ अक्सर ?
क्या था उसमे …जो नहीं था पढ़ा ……मैंने अब तक ,
जब उसको पढने का मंथन मैं करने लगी ,
तब नफरत सी हो गयी …..उसके ख़्वाबों से ।
मुझे अपने “मन” पर है ……रोज़ ऐतबार ,
कि वो करता है सिर्फ ……उससे प्यार ,
जब उस प्यार का मंथन मैं करने लगी ,
तब नफरत सी हो गयी ……अपने ख्यालों से ।
मेरा “मन” क्यूँ चला है ……लुटने को ,
उसकी चाहत में देखो ….मिटने को ,
जब उस चाहत का मंथन मैं करने लगी ,
तब नफरत सी हो गयी …….अपने ठिकानों से ।
मैं पहले ही बेहतर थी …..अपने ख्यालों में ,
“वो” क्यूँ आया ……मेरी जिंदगी की राहों में ,
जब उन राहों का मंथन मैं करने लगी ,
तब नफरत सी हो गयी ……अपने फसानो से ।
बहुत तकलीफ में है देखो …….आजकल मेरा “मन”,
उसको पढ़ने के लिए …….बाकी नहीं अब कोई गम ,
जब उस गम का मंथन मैं करने लगी ,
तब नफरत सी हो गयी …….अपने निशानों से ।
मैं अपने “मन” को ……रोज़ बहलाती हूँ ,
उसमे नयी साँस भरती जाती हूँ ,
जब उस नयी साँस का मंथन मैं करने लगी ,
तब नफरत सी हो गयी …….अपने नए आशियाने से ।
मेरा “मन” पहले जैसा ही …..फिर से बना ,
मैंने जितना दूर “उसे” करना चाहा ……उसमे “वो” और जमा ,
अब मंथन को बाकी जब कुछ रहा ही नहीं ,
तब नफरत सी हो गयी ………खुद को हराने से ।
अब मेरा “मन” मंथन करने लगा ,
क्योंकि नफरत नहीं थी ……..उसमे तेरे फ़साने से ,
अब मेरी साँस मंथन करने लगी ,
क्योंकि अब हर वक़्त मैं काबिल थी ……..लड़ने ज़माने से ॥
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