तू मेरे मरने की कामना करता चल ……… करता चल, करता चल ,
तू मेरे गिरने की कामना करता चल ……… करता चल, करता चल ।
तेरी कामना होगी जरूर पूरी ……… मेरे मरने से सोची है तूने जो दूरी ,
मेरे मरने का , अब से ही तू मातम मनाता चल ……… मनाता चल, मनाता चल ।
मैंने तेरी सुझाई शाख पर ………नहीं अब तक कदम रखा था ,
तू अपने हाथों से , उस शाख को अब गिराता चल ……… गिराता चल, गिराता चल ।
हज़ार नेकियाँ मैंने भी की ……… तुझे ना दिखी मेरी एक नेकी ,
हर नेकी को मेरी , अब तू अपने हाथों से मिटाता चल ……… मिटाता चल, मिटाता चल ।
मेरे गिरने से ही गर मिलता है ……… तुझे सुकून थोड़ा ,
तो चल उस सुकून को , तू अपनी रूह में अब उतारता चल ……… उतारता चल, उतारता चल ।
सुनकर ताने तेरे इतने सालों से ……… अब ये जिस्म मेरा छिलता है ,
तू मेरे जिस्म पे , अपने हाथों से नफरत का नमक मलता चल ……… मलता चल, मलता चल ।
भीगे नैना हर बार तेरी ……… छींटाकशी से और बेहाल हों ,
तू मेरे नैनों में , अपनी फ़ितरत का नया रँग और भरता चल ……… भरता चल, भरता चल ।
मैं रोज़ खुद ही , अब मौत माँगती हूँ ……… उस उपरवाले से ,
तू मेरी दुआओं में , अब अपनी भी दुआ को शामिल और करता चल ……… करता चल, करता चल ।
गिर-गिर के अब उठने का ………साहस नहीं बचा है मुझमे ,
तू मेरे हर साहस को , अपने पैरों तले अब फिर से रौंदता चल ……… रौंदता चल, रौंदता चल ।
हर बार मेरे मरने के जुमले को ………एक बहाना बनाने का ख्याल तेरा अच्छा है ,
तू उस ख़याल को , अब अपने हाथों से अंजाम तक लाता चल ……… लाता चल, लाता चल ।
मैं आज बहुत टूट गई , तेरे शब्दों से ……… ओ मेरे हमदम ,
तू मेरे टूटने का , अब और फायदा उठाता चल ……… उठाता चल, उठाता चल ।
तू मेरे मरने की कामना करता चल ……… करता चल, करता चल ,
तू मेरे गिरने की कामना करता चल ……… करता चल, करता चल ।।
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