मेरी कविताये
1- ” दहेज़”
“खुलती नहीं हैं क्यों ये .रस्मोंं की बेड़ियां ,
ओढ़े हुए है अब भी रिवाज़ों की चादर ।
वो कौन से हैं बंधन जिसमे ,
जकड़ी है वो इस कदर ,
चाहा जो उसने खोलना ,
बंधनो के पाश को ,
हुयी नहीं वह मुक्त फिर भी —–
पूरी तरह कभी ।
चढ़ती रहेगी बलि कब तक ,
दहेज़ के नाम पर ।
सुनता नहीं क्यूँ ये समाज ,
उस मासूम की आह को ।
होता ही जा रहा है विकराल ,
दहेज़ रुपी दानव ।
दामन मे इसके जानें कितनी ,
मुरझा रही हैं मासूम कलियाँ ।
बदल गया परिवेश तो क्या ,
नियति यही है आज भी इस नारी की,
इस भरी दुनियाँ मे कितनी ,
विवश , लाचार है ये नारी ।।”
मेरी कलम से ……
2- ” नारी मन की व्यथा ”
“लाख बदल जाये ये ज़माना ,
मगर जकड़ा हुआ है आज भी —-
समाज अपने पुराने परिवेश मे ।
कहने को तो आज स्वतंत्र है ये नारी ,
पर पूछो उससे की क्या सचमुच —–
स्वतंत्र हो पायी है वो मन से ।
हाय ! ये समाज के बेदर्द बंधन ,
तड़प के रह जाता इसमे नाज़ुक ये मन ।
चाहती है क्या वो , किसी को परवाह नहीं ,
इस जहाँन मे उसकी ख्वाहिश की कोई कद्र नहीं ।
करना उसको वही है जो सब चाहते हैं ,
ढालना है खुद को उसी परिवेश मे ——
चाहा है जैसे सबने जिंदगी के हर मोड़ पर।
जिंदगी का फैसला भी खुद कर नहीं सकती।
घुट-घुट कर जीना ही है जिंदगी उसकी ।
चाहे भी गर वो कोई कदम नया उठाना ,
देता है उसे दुहाई रिवाज़ों की ये जमाना ।
सह कर के हर दर्द को उसे ——
रिश्ते तो फिर भी निभाने हैं ।।”
मेरी कलम से ……..
3- “अहसासे जिंदगी ”
“वो जिंदगी ही क्या , जिसमे कोई दर्द ही न हो ,
वो ख़ुशी ही क्या , जिसमे कोई गम ही न हो ,
वो दर्द ही क्या , जिसमे किसी की तड़प का
कोई अहसास ही न हो ।
वो प्रीत ही क्या , जिसमे कोई उल्फत ही न हो ।
ख़ुशी का अहसास सिर्फ उसे ही होगा,
जो गम से रूबरू हुआ होगा ।
तड़प का अहसास सिर्फ उसे ही होगा
जिसने प्रीत का दामन थामा होगा ।
यूँ तो इस जहाँन मे निराश होकर ——-
ऐसे ही जिये जाते हैं कितने लोग ।
पर पीकर अश्कों को मुस्कुराकर ,
जीने का अंदाज़ ही कुछ और है ।
मुस्कुराता है कोई दर्द छुपाने के लिए ,
मुस्कुराता है कोई किसी को रुलाने के लिए ,
यूँ तो मुस्कुराता है हर कोई ——-
किसी न किसी बहाने से ।
पर है इंसां वही जो मुस्कुराये ,
किसी की ख़ुशी के लिए ।। “
मेरी कलम से ……..
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