क्या सोच रहा मैं ?
यही सोच सोच कर ,
दी जिंदगी गुजार यही सोच सोच कर ।
वे कहते हैं बरबाद किया
मैंने खुदीं को ,
आबाद कब मैं था
जो बरबाद कर लिया ?
पैगामें बहारें आ
हँसाती हैं चमन को ,
उजड़ा हो गर दयार
तो बहार क्या करे ?
दी उम्र कुल गुजार
लेकिन ईद न देखी ,
रमजान की यह ईद
पर वह ईद नहीं है।
वे कहते हैं हजारों नस्ल
है इस जमीं पर ,
पर दो ही नस्ल का
मैंने दीदार किया है ।
बरबादिओं की कब्र पर
आबाद है आबाद ,
आबद की भी कब्र है
ये देखा नहीं है ।
***
गुण व अवगुण
वकवादी खड़ा बकवाद करे
सिखलाये सीख सयाना को ,
खुरचाली खड़ा खुरचाल चले
जौहर जतलाये जनाना को ।
करामाती किया करामात अजब
बरबाद किया बरबादों को ,
कुछ ऐसे लोग भी होते हैं
जो खा जाते सब स्वादों को ।
छल को छलना , जल से जलना ,
यह अर्थ अजब कुछ लगता है ;
पर पंच प्रचंड प्रपंची पर ,
खल खेल खरा बन खेलता है ।
शर से सर को सब हैं छेदे ,
जो शब्द मालायें बेधा है ;
वह अमर अजर है सदा बना ,
सब अस्त्रों में वह तेगा है ।
कभी राम मरे , कभी रावन भी ,
कभी श्याम मरे , गौतम भी गये ,
अमरत्व पिये वह जिंदा है ,
जिसने कर लेखन छोड़ गये ।
वह आनन मात्र बधाई है ,
जो मोद करे मन-कानन को ,
धन्य धन्य वह नयन नेत्र ,
जो चमक भरे मन-आँगन को ।
कोटि कोटि हैै नमन पुन: ,
उन मीठी मीठी बोली को ,
गुण बिना है व्यर्थ सभी ,
हो रंग नहीं ज्यों होली को ।
***
इश्क और आँखें
इश्क की बातें छिपे न छिपायें ,
कितना ही मुँह पे ताला लगायें ,
आँखें बता देती बात ,
दिन हो अथवा रात ।
भीड़ से चुन लेती एक ,
जिस पे दिल देती फेंक ,
करा देती मुलाकात ,
आँखें बता देती बात ।
बनके स्वयं अनजान ,
कर लेती प्रीत पहचान ,
दिखला देती करामात ,
आँखें बता देती बात ।
छोटी सी आँखें ये गोल ,
मालिक की देन अनमोल ,
सबको दिये हैं सौगात ,
आँखें बता देती बात ।
–END–