खिड़की से झांकती आई भोर
चुन्नू – मुन्नू जागो देखो,
खिड़की से झांकती आई भोर,
आँगन लीप रही है काकी,
किरणों का मच गया शोर।
सूरज झांक रहा नभ में,
चढ़ा सात रंगों का घोडा,
किरणों की बारिश है करता,
फैला उजाला थोड़ा – थोड़ा।
बादल ढँक लेता सूरज को,
उसपर नहीं है चलता जोर।
चुन्नू – मुन्नू जागो देखो,
खिड़की से झांकती आई भोर…
तपती धरती गर्मियों में,
अम्बर से बरसे अंगारे,
छाँवों को नहीं मिलती छाँव,
छोड़े देश विहंगम सारे।
सूखे तालाबों की मछली,
छटपटाती, जाएँ किस ओर।
चुन्नू – मुन्नू जागो देखो,
खिड़की से झाँकती आई भोर…
धरा – पटल पर फटी बिवाई,
वर्षा रानी कब आएगी?
कब होगा मिलन बहनों का?
हरियाली कब छा जाएगी?
कब बरसेगा, अमृत अम्बर से?
होगी काया सराबोर?
चुन्नू मुन्नू जागो देखो,
खिड़की से झाँकती आई भोर..
अकुलाहट भर रहा है मन में,
कुकलाहट घमौरियों का तन में,
हे भगवन, अब तो सुन मेरी,
बादल ले आ यहाँ गगन में।
लोगों की विनती सुन – सुनकर,
छाये मेघ, भींगा पलक – कोर।
चुन्नू मुन्नू जागो देखो,
खिड़की से झाँकती आई भोर।
बादल आये काले – काले
आसमान में दौड़ लगा रहे,
बूँदें बरसी मन तृप्त हुआ,
सभी अपने सपने सजा रहे।
गाय रम्भा रही चौगान में,
नृत्य कर रहा, बाग़ में मोर।
चुन्नू मुन्नू जागो देखो,
खिड़की से झांकती आई भोर …
नटखट बादल घेर रहे पहाड़ को,
बूँदें पड़ती चट्टानों पर,
बिखर – बिखर जल – श्रोत बन रहे,
उतर चली तिरछी ढलानों पर।
दूर क्षितिज मिल रहा धरा से,
प्यार बरसा रहे घनघोर।
चुन्नू मुन्नू जागो देखो,
खिड़की से झांकती आई भोर…
किसानों की हलचल बढ़ रही,
खेतों में वे बीज डाल रहे,
लहरायेगा सोना अनाज का,
मन में हजार सपने पाल रहे,
जय बोलो अन्नदाता की,
जागी उमंगें चहुँ ओर।
चुन्नू मुन्नू जागो देखो
खिड़की से झांकती आई भोर…
दूबों पर पसरी है ओस,
धानों की बालियाँ झूम रहीं,
हवाएँ सहलाती है उनको,
ओठों से उनको चूम रहीं।
बैलों की घंटियां बज रही,
किसान चला खेतों की ओर।
चुन्नू – मुन्नू जागो देखो,
खिड़की से झांकती आई भोर…
सूरज जैसे चढता ऊपर,
ठंढ समेटती अपनी चादर,
ऊनी कपडे रहे उतार सब,
सूरज की गर्मी को पाकर।
चुन्नू – मुन्नू जाओ पढने,
माँ की बंधी आशा की डोर।
चुन्नू – मुन्नू जागो देखो,
खिड़की से झांकती आई भोर..
कौवा बोल रहा मुंडेर पर,
किसी के आने की है आहट,
भैया आज आ रहे मुंबई से,
देखो लांघ रहे वे चौखट,
खुशियों का मेला आँगन में,
बिहँस रहा तुलसी का बौर।
चुन्नू – मुन्नू जागो देखो,
खिड़की से झांकती आई भोर..
सूरज दौड़ा जाता मिलने,
संध्या रानी बाट जोह रही,
लाली छा गई अम्बर में,
चुम्बनों की झड़ी लग रही,
मिलन हुआ संध्या सूरज का,
ठंढ फ़ैल रही चहुँ ओर।
चुन्नू – मुन्नू जागो देखो,
खिड़की से झांकती आई भोर..
स्याह रात उतरती धरती पर,
कंप – कंपाती बदन बेध रही,
घुस जा जल्दी से रजाई में,
ठंढी बयार हड्डियां छेद रहीं।
फूस का छप्पर भींग रहा ओस से,
टीस भर गई पोर – पोर।
चुन्नू – मुन्नू जागो देखो,
खिड़की से झांकती आई भोर..
धरती जिनकी बनी बिछौना,
चादर जिनका आसमान है,
कौन करे है उनकी चिंता,
उनका घर सारा जहान है।
सूरज उनका छिपा गगन में,
कुहासे का नहीं ओर – छोर।
चुन्नू – मुन्नू जागो देखो,
खिड़की से झांकती आई भोर..
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- –ब्रजेंद्र नाथ मिश्र
तिथि: 18-01-2016, जमशेदपुर।