सवेरा
अभी सुबह हुई नहीं ,
चाँद अब भी सर पर इतरा रहा ,
तारे भगजोगनी की तरह टिमटिमा रहे
कुतों ने भी अलापना बंद कर दिया है
वही शयन कक्ष , वही बैठकखाना , वही रसोईघर
एक चौकी , उसी पर रजाई तोशक और दो – दो तकिये
सिरहाने पर साफ – सुथरे
चौकी के नीचे जिन्दगी की सारी जरूरतें
एक ही कमरा माँ छोड़ कर असमय ही चल दी
अब वह अकेले रह गयी , एक बच्ची साल भर की
सो रही है पता नहीं कब उठ जायेगी
उठते ही चिल्लायेगी दूध के लिए
अपना दूध कहाँ, छाती सुखी पडी है
मरुभूमि की तरह ,
बच्ची करवटें ले रही है
दो घंटे न उठे तो बेहतर है
रेशमा की आँखों में नींद कहाँ
सुबह से शाम तक एक भी आदमी
युवा हो या वृद्ध नहीं आया
शायद कोई चालक आ टपके
जी टी रोड है – सिक्स लेन्निंग
चोबीसो घंटे चहल – पहल
धीरे – धीरे अँधेरा छंट रहा है
हाथ को हाथ दिखलाई पड रहा है
अभी भी उम्मीद है कि कोई आये
एक भारी भरकम कद काठी का अधेड़
उसकी और लपकता हुआ आ रहा है
जैसे कई दिनों का भूखा – प्यासा हो
रेशमा कुछ सम्हले , कुछ पूछे
उससे पहले ही वह सख्स उत्तेजना में
उसकी बांह पकड़कर अन्दर ले जाता है
बच्ची सो रही है , वह रोकती है
वह दो तमाचे गालों पर जड़ देता है
और चल देता है, रह जाता है
महज भद्दी – भद्दी गालियाँ
बच्ची जग जाती है
वह उसे अपने सीने से लगा लेती है
बालों को सहलाती है , दुलारती है
प्यार उमड़ पड़ता है और साथ ही साथ
स्तन दूध से भर जाते हैं
बच्ची भरपेट दूध पीती है ,
कभी स्तन की ओर तो कभी
माँ को तिरछी नजर से घूरती है
क्षितिज में आग का लाल गोला
ऊपर चढ़ रहा है आहिस्ते – आहिस्ते
बच्ची आज खिल खिलाकर हंस पड़ती है
और सूर्य की और इशारा करती है
मानो कह रही हो कि आज ही
उसके जीवन में सवेरा ने करवट ली है
–END–
रचयिता : दुर्गा प्रसाद |