मुझे नहीं पता कि तुमने ……. आज मुझको क्यूँ पढ़ा ?
मगर जितना भी पढ़ा ……. वो एकदम सही पढ़ा ।
एक दर्द रिसता है जब अक्सर …… इन टूटे-फूटे शब्दों से ,
तब तुम्हारी याद आती है …… बिन बोले कुछ इन लफ़्ज़ों से ,
तुम मूक से बन जाते हो ……… पढ़कर जब इन शब्दों को ,
हाँ वही तो ये शब्द हैं ………. जिनके लिए मैंने सिर्फ तुम्हे चुना ।
मुझे नहीं पता कि तुमने ……. आज मुझको क्यूँ पढ़ा ?
मगर जितना भी पढ़ा ……. वो एकदम सही पढ़ा ।
मैं टूट रही हूँ यहाँ फिर से …… उनके कड़वे तीरों के साथ ,
मैं जूझ रही हूँ यहाँ फिर से …… अपनी जद्दो जहत में आज ,
कैसे भला कोई सन्देश दूँ ………तुम्हे अब अपनी सलामती का ,
बस यहीं पढ़ो जो है लिखा ………. कि मैने ताना बाना है फिर एक बुना ।
मुझे नहीं पता कि तुमने ……. आज मुझको क्यूँ पढ़ा ?
मगर जितना भी पढ़ा ……. वो एकदम सही पढ़ा ।
रातों-रात में बदल गई थी फितरत …… उनकी सौदेबाज़ी की ,
पता नहीं वो क्यूँ कहने लगे …… मुझे एक मूरत दगाबाज़ी की ,
कसूर कितना था मेरा हुजूर ………ये सिर्फ मुझे था या तुम्हे पता ,
तभी तो मैंने तुम्हे ही ………. अपने लिए सिर्फ था चुना ।
मुझे नहीं पता कि तुमने ……. आज मुझको क्यूँ पढ़ा ?
मगर जितना भी पढ़ा ……. वो एकदम सही पढ़ा ।
बहुत आसान होता है …… मर्दों का औरतों पर तोहमत लगाना ,
मगर औरतों की तोहमत को …… कितना मुश्किल होता है खुद गले से लगाना ,
मेरी लगाईं तोहमत पर ही ने तो ……… उनके ख्यालों को इतना बेकाबू किया ,
कि रातों-रात ही में ………. उनके अश्लील शब्दों को मैंने इतना सुना ।
मुझे नहीं पता कि तुमने ……. आज मुझको क्यूँ पढ़ा ?
मगर जितना भी पढ़ा ……. वो एकदम सही पढ़ा ।
मैं जब भी जीने लगती हूँ …… एक मरने का ख्याल ना जाने कहाँ से आता ,
मैं जब भी थोड़ा हँसती हूँ …… एक तूफ़ान मुझे फिर अपने घेरे में घेर लाता ,
मेरा रोम-रोम तब नोचता है ………अपनी ही अंतरात्मा को यहाँ ,
ये चीख कर कहता है तब ………. कि क्यूँ मैंने तुम्हे अपने लिए है चुना ?
मुझे नहीं पता कि तुमने ……. आज मुझको क्यूँ पढ़ा ?
मगर जितना भी पढ़ा ……. वो एकदम सही पढ़ा ।
तुम चले गए जो मेरी ज़िंदगी से …… तो फिर से ये बदरंग बन जाएगी ,
जो एक आग तुम संग लगती है …… वो आग फिर से बुझ जाएगी ,
मगर उस आग के लिए मुझे ……… इतना दर्द सहना क्यूँ पढ़ा ?
जबकि मैंने अपनी ज़िंदगी में ………. दोनों मर्दों का किया हमेशा ही शुक्रिया ।
मुझे नहीं पता कि तुमने ……. आज मुझको क्यूँ पढ़ा ?
मगर जितना भी पढ़ा ……. वो एकदम सही पढ़ा ।
वो हमेशा ही एक हक़ीक़त हैं …… और तुम हमेशा ही एक ख्वाब हो ,
फिर क्यूँ भला …… इस हक़ीक़त और ख्वाब में एक तकरार हो ,
मैंने सिर्फ तुम्हे ……… अपने लेखों में ही है गढ़ा ,
यही एक सत्य है ……… जिसे तुमने यहाँ पर है पढ़ा ।
मुझे नहीं पता कि तुमने ……. आज मुझको क्यूँ पढ़ा ?
मगर जितना भी पढ़ा ……. वो एकदम सही पढ़ा ।।
__END__