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Naari

Published by vikasbhimwal in category Hindi Poetry | Poetry with tag Indian woman | women

मैं नारी हूँ ।
मैं जंजीरो में घिरी हूँ ।
मैं किसी एक कोने में पड़ी हूँ ।
मत पूछना दुनिया वालो मैं किस तरह पली बढ़ी हूँ ।
हर रास्ते में हर गलियो में इन्तजार कर मर्द बैठे हैं मेरे इन्तजार में ।
कभी मैं उनकी नजरो में आउ और उनकी जिंदगी रंगीन कर जाऊ ।
हवस की आड़ में बैठे मर्दो की जिंदगी मैं कब हसीं कर जाऊ ।

आदत हो गयी हैं मर्दो को पीछा करने की ।
ना देखते हैं बहिन बेटी हैं हमारे अपनों की ।
उन्हें तो बस पीछा करना रोमांस सा लगता हैं ।
ना शर्म हैं ना लाज हैं बस छेड़ना उनकी मर्दानगी लगता है ।

कभी महसूस ही नही होता की देश में औरत चैन से रह भी पाएगी ।
जो कभी रास्ते में अकेली चलती नारी क्या वो अपने घर तक पहुच भी पाएगी ।
ट्रैन हो या बस हो या कोई चौराये पर खड़ी एक औरत हो ।
तुम सोच भी नही सकते दुनिया वालो क्या एक औरत सुकून से सो भी पाएगी ।

मेरे शरीर में बस वो अंग ही हैं जिन अंग पर तुम शिकार करते हो ।
पागल हो जाते हो और वार कर के उन्ही अंगों पर बेरहमी से वार करते हो ।
हर वक़्त बस डर में रहना पड़ता हैं ।
कभी घर में भी शिकार ना बन जाऊं ये डर आज भी नारी को सेहना पड़ता हैं ।

तुम समझ भी नहीं सकते एक औरत होना क्या होता हैं ।
लाख बंदिशो में भी मुझे अपनों के लिए जीना पड़ता हैं ।
जरुरी नही की तुम अपने हाथो से शिकार करते हो ।
आँखों से नोंच कर तुम आंखों से भी बलात्कार करते हो ।

नारी का अपमान करने वालो तुम कुछ कर नहीं पाओगे ।
संभल जाओ दुनिया वालो एक दिन तुम खोंखले ही मर जाओगे ।
आज फिर कहती हूँ नारी एक ऐसी शक्ति हैं जो तुम सेह भी नहीं पाओगे ।
मेरी कोम उजाड़ उजाड़ कर तुम बीच चौराये पर बदनाम होकर रह जाओगे ।

नारियो का जीवन तुम्हे नर्क से बत्तर कर दिया हैं ।
पूछना इन् समाज वालो से इन्होंने भी जीना हराम कर दिया हैं ।
पूछ कर देखना अपनी ही माँ बहनो से की जब आँख खुले तुम्हारी ।
नारियों का जीवन तुमने शिकार कर के मर्दानगी का नाम दे दिया हैं ।
ना शर्म हैं ना लाज हैं बस इन्ही हरकत से तुमने अपनी ही माँ का अस्तित्व खराब कर दिया हैं ।

–END–

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