In this Hindi poem the poetess blesses her daughter on Daughter’s day and assume Her as a moon which makes Her life Cool.
मेरी “बिटिया” मुझे ……..लगती है क्यूँ चंदा जैसी ?
मैं अक्सर रातों में …….उसको उठकर निहारा करती हूँ ।
सब सो जाते हैं चुपचाप से जब …….अँधेरे में ,
मैं उस अँधेरे में ……उसके भविष्य को संवारा करती हूँ ।
जिस तरह चंदा रातों में चमक …….रोशनी करता ,
और तारे उसके संग …….दमकते रहते हैं ।
वो भी रातों को जब बिस्तर पर लेट ……अपनी पलकें बंद करती ,
मैं उन पलकों के सपनो में ….तारे बन चमकती रहती हूँ ।
अपनी बिटिया को देकर ……संस्कार निराले ,
मैं भी कर दूँगी एक दिन ….उसे किसी और के हवाले ।
तब बेचैन सा होगा ……..मेरा मन भी अक्सर ,
जब रातों को नहीं होगी ……वो मेरे तकिए के किनारे ।
तब मैं अपने दिल को तसल्ली दूँगी ……उसे चंदा समझकर ,
कि वो भी अब करती है …..किसी और के घर में उजियारा ।
क्या हुआ जो मेरे आँगन में ……बाकी है उसकी अब एक ही किरण ,
मगर वो दे रही शीतलता ……..औरों के आँगन में बन पूरा चाँद मतवाला ।
ये मेरी खुशनसीबी है ……जो मैंने उसको जन्म दिया ,
उसके आने से अपने जन्म को भी …….सँवार लिया ।
कल वो नाम रोशन करेगी जब ……किसी और के घर के चिराग को जलाकर ,
तब ढेरों दुआएँ होंगी मेरे भी साथ …….जो लौटेंगी मेरे आँगन में एक उम्मीद बनकर ।
अपनी खुशनसीबी पर उस दिन …..मुझको भी ऐसा गर्व होगा ,
जब कोई मुझसे आकर के ये कहेगा ……कि तुम्हारे चाँद से मेरे घर का हर कोना भी अब स्वर्ग होगा ।
इसलिए देती हूँ मैं अपनी बिटिया को …….रोज़ ऐसी एक सीख नई ,
जो बना देती उसको चाँद …….और मैं रहती हूँ बनकर पृथ्वी यहीं ।
मेरी “बिटिया” तू है सच में ……ईद का चाँद नया ,
जिसके आने से ……..मैं अपना वजूद भी अब खोने लगी ।
तू है प्यारा सा ,सुन्दर सा ……..एक ऐसा चंदा ,
जिसकी झलक एक पाने को ……मैं रातों को सोना भी अब भूल गई ॥
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