This Hindi poem highlights the social issue of domestic violence in which every written word of the poetess seems to be a revolt to His husband and He gave a light beat to Her for this. In the end the poetess accept it as a revolt and forgive the same to get a new fate.
हर लिखावट को एक बगावत समझने वाले ,
जा हमने छोड़ी हर बगावत तेरे क़दमों के आगे ।
वो बगावत नहीं थी जो हमने लिखी थी कहीं ,
वो एक दिल की समझ थी जो छपी थी यूँही ।
तेरी नासमझी ने उसको बगावत क्यूँ समझा ?
क्या हममे है कहीं भरी हुई बगावत की सदां ?
बस ये जुर्म था कि उस दिन पूछी नहीं थी तेरी मर्ज़ी ,
क्या लिखें और क्या ना लिखें ऎसी अर्ज़ी ?
हम तो ये भूल चुके थे कि बँधें है तुझसे ,
साँसें भी गर गिने तो हों उन पर तेरे पहरे ।
गर ये ही बुनियाद होती है सात वचनों की ,
तो हर वचन की सौँ है हमेँ निभाएँगे उसे भी ।
टूटा -टूटा सा तारा ना जाने अब हमको क्यूँ दिखता ?
टूटी मंज़िल ,टूटे पँछी का पर है क्यूँ उड़ता ?
सब एक पल में ऐसे टूटा जैसे सजीं कोई मैय्यत हो ,
जिसमे अपने जनाज़े की खुद एक कीमत हो ।
मेरा बर्बाद दिल आज और भी बर्बाद हुआ ,
जो था कुछ बाकी वो तार भी बेतार हुआ ।
लौट आये हैं देखो फ़िर से उन्ही राहोँ में ,
लिखते रहने को अपना दर्द कहीँ वीरानों मेँ ।
अब ना फ़िर से तू समझना इसे क़ोई बगावत ,
ये फिर वही आँसू हैं जो बह चले लिखने खुद की सूरत ।
मैं बागी नहीं हूँ अपनों के सुखों के आगे ,
बस जो सच है उसे लिखती हूँ बाँध रिश्तों के धागे ।
बहुत तकलीफ होती है मुझे भी अक्सर पिट कर ,
जब तू बेवजह दोषी कहे सबकी नज़रों में गिन कर ।
मेरा कसूर है इतना कि मैने घरेलू हिंसा को अपनाया ,
खुद को बागी ना बना तुझे अपने सर का ताज बनाया ।
फिर भी बागी कहे तू हमको ए चाहने वाले ,
ये कैसी चाहत है जिसमे होते हैं सिर्फ़ तेरे भाले ।
मेरी बगावत गर एक हक़ीक़त थी मेरे हबीब तेरे लिए ,
तो जा छोड़ी हमने हर बगावत एक नई तक़दीर फ़िर से लिए ॥
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