This Hindi poem highlights the social issue of “Domestic Violence” in which a woman is not only suffers the physical punishment but also the harsh words by her Husband.This is really a serious issue of the society in which a woman have to spend her whole life with such obstacles as there is no specific law against such types of domestic violence and every second woman have to bear the same so that she may save marriage ties till Her last breath.
आज उसने मुझे फिर मारा …..
कहता कि तू एक रखैल है ,
सौ जनम भी सुख पा ना सकेगी ,
ऐसी ज़हरीली विष की बेल है ।
आज उसने मुझे फिर मारा …..
कहता कि तू धोकेबाज़ है ,
इस कलयुग में तूने जो जनम लिया ,
यही तेरा सबसे घोर अपराध है ।
आज उसने मुझे फिर मारा …..
कहता कि तू एक चोर है ,
अपने ही माँ-बाप की तरह ,
मेरी ज़िंदगी से जुड़ा एक दूसरा छोर है ।
आज उसने मुझे फिर मारा …..
कहता कि तू मेरी रातों का संताप है ,
मेरे जीवन में आने वाली हर खुशियों को ,
ग्रहण लगाने का तू ही एक बदनुमा दाग है ।
मैं बहुत देर तक उसके इन शब्दों को ……
सीने में शूल की भाँति चुभाती रही ,
अपने इन नैनों से हज़ारों आँसुओं की माला को ,
मन ही मन कहीं अपने भीतर पहनाती रही ।
फिर अचानक से मुझे ये ख्याल आया ,
कि मैं ही तो थी वो …..जिसने उसको एक मर्द बनाया ,
आज उसी मर्दानगी को पाकर उसने इतने सालों में ,
देख मुझे ही अपनी अर्धांगनी से वेश्या बनाया ।
मैं फिर से रोने लगी ये सोच …….
कि कितना कठिन होता है निभाना …….ऐसी शादी के रिश्ते का बोझ ,
जिसमे उम्र भर पत्नी अपने पति का अनुसरण करे ,
और अंत में उसी की गालियों को बसर कर ….. अपनी अंतिम साँसें भरे ।
कब ख़तम होगा इस “घरेलू हिंसा” का देह व्यापार ?
जिसमे जीत हमेशा पुरुषार्थ की हो ……और स्त्री पर लगे व्याभिचार ,
कब तक वो यूँही मुझपर इस तरह से लात-घूँसे बरसाकर ,
ये साबित करता रहेगा कि भूल की मैंने उसका साथ पाकर ।
क्या मैं सिर्फ एक बिस्तर बनकर रात-दिन बिछती रहूँगी ?
क्या मैं अपने मनोभावों को कहने से यूँही उससे डरती रहूँगी ?
क्यूँ ए माँ तूने मुझे अपने गर्भ में इस तरह से ठहराया ,
कि तेरे ही दामाद ने देख तेरी बिटिया को एक वेश्या बनाया ।
आज उसने मुझे फिर मारा …..
कसूर सिर्फ इतना था कि मैंने उसकी बात का समर्थन नहीं किया ,
आज उसने मुझे फिर मारा …..
कसूर सिर्फ इतना था कि मैंने अपने मन में दबी आवाज़ को उसके आगे थोड़ा बुलंद किया ।
मगर मैं जानती हूँ कि …..हर बार की भाँति इस बार भी मैं फिर से यूँही घुट कर रह जाऊँगी ,
हर बार की भाँति इस बार भी मैं …….इस शादी के सात वचनों को गले लगाऊँगी ,
क्योंकि अब ये मेरी नियति ……और उसके पुरुषार्थ का विषैला खेल है ,
जिसमे हिन्दुस्तानी सभ्यता की ……एक ज्वलंत ज़हरीली “घरेलू हिंसा” की अमर बेल है ॥
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