This Hindi poem highlights the social issue of liquor in which a wife urges to break the glass of His Husband as she was fed-up with His daily routine of drinking.She also commits the EMA of Her life
दिल हो गया अब खाली-खाली ………तेरे “पैमाने” का दम भरते-भरते ,
इंतज़ार में कट गई ये जवानी …..ये सोच कि “पैमाना” छोड़ देगा कभी तू हँसते-हँसते ।
क्यूँ लगाऊँ मैं इस “पैमाने” पर तोहमत ……ये मेरी मर्ज़ी का गुलाम नहीं ,
जब इंसान पर जोर ना चल सका ……तो ये तो एक बेजान सा शीशा~ए~आम यहीं ।
छलकते जाम ने तेरे एक दिन लाकर दिया …..एक प्यारा सा तोहफा हमें ,
उस तोहफे पर नाम लिखा था …….किसी “आशिक” का उस शाम में ।
बहुत दिनों तक हमने भी किया ……देख उसके “इश्क” का नशा ,
और फिर एक दिन याद आया हमें ……तेरे “पैमाने का वो सिलसिला ।
तब सोच ये कि “सिलसिला” वो शब्द है ……..जो बहुत दर्द दे ,
गर एक बार शुरू हुआ ……..तो फिर खत्म होने का ना ये कभी दम ले ।
“पैमाना” उस वक़्त था तेरे साथ देख ……मेरे भी इस हाथ में ,
बस देखना था ये कि कौन तोड़ेगा उसे ……..उस वीरानी रात में ।
तेरी उम्मीद हमें थी तो बस इतनी …….कि तू कुछ दिनों के लिए ही तोड़ेगा उसे ,
मगर अपनी वफ़ा पर था यकीन इतना ……इसलिए देख हमने छोड़ा उसे ।
ये सोच कि गर दोनों ही इस तरह से ……..जाम पर जाम बनाएँगे ,
तो फर्क क्या रह जाएगा मुझमे ……..जो तेरी बुरी राह पर हम भी अपने साज मिलाएँगे ।
इसलिए हमने छोड़ दिया …….वो मीठा सा ,प्यारा सा ……मोहब्बत का “नशा” ,
मगर फिर भी खाली रह गया ……देख तेरे साथ का वो कहकशा ।
हर रोज़ हम ये फ़रियाद करें …….इस दिल में ऐसी मुराद करें ,
कि ए “पैमाने” तू टूट जा किसी दिन …….इतना छलक …..कि फिर ना तुझे कोई याद करे ।
“नशा” जो होता दो-चार दिन का ……तो झेल जाते उसे हम भी हँसकर ,
मगर जिस “नशे” में हो हर रोज़ की तड़प …..उस “नशे” के लिए नहीं कुछ भी बेहतर ।
क्या पता कब ये “जिस्म” तेरे इंतज़ार में ……यूँही किसी दिन दम तोड़ दे ,
तब “पैमाना” छलक के ये कहेगा ……कि क्यूँ था मैं बेवफा इतना ……जो उसकी तड़प को अपने “पैमाने” से तोल दे ।
मुझे आज भी “पैमाने” की हस्ती पर ……..ना देख रोना आया ,
बस तेरे इंतज़ार में “वो” शामिल है ……इसी गम से ……उसे तोड़ने को जी मेरा ललचाया ॥
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