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Ek Sainik Ka Aakhiri Khat

Published by Ravi Shekhar in category Hindi | Hindi Poetry | Poetry with tag Mother | soldier | war

एक सैनिक का आखिरी खत

Soldier statue hand grenade

Hindi Poem – Ek Sainik Ka Aakhiri Khat
Credit Mutter Erde

इस जीवन रुपी सागर को ,नदियों से हमने भरना है ,
है बहुत खूब ये देश मेरा, जां इसे समर्पित करना है ,
हैं रखवाले भारत माँ के, हम अपना शीश नवाते हैं ,
आता मौका जब जब भी है ,हम अपनी जां लुटाते है ,
बस यहीं अनुग्रह तुमसे है ,तुम मान हमारा रखना ,
हर प्रहर है प्यासे प्यार को हम, सम्मान हमारा रखना ,
तुम मान हमारा रखना, सम्मान हमारा रखना …..

कल इसी समय ,कल यहीं शाम, दुश्मन की कफ़न सजाएंगे ,
सींचेंगे धरती लहू से हम, खुद भी कुर्बान हो जाएंगे ,
ना अश्क़ बहाना ओ यारो, जब हम दफनाए जाएंगे ,
हैं शूरवीर इस देश के हम, फिर लौट के घर को आएँगे ,
हो जन्म तेरी ही कोख में माँ , अल्लाह से यहीं मनाएंगे ,
हैं बेटें माँ हम सब तेरे, हम तेरी लाज बचाएंगे ,
चाहे कुर्बान हो जाएंगे , माँ तेरी लाज बचाएंगे …..

आँखों में आशा लिए हुए ,माँ चौखट पर बैठी होगी ,
करती होगी पूजा हरपल ,थोड़ी मुझपर ऐंठी होगी ,
छोटी बहना भी वहीँ कहीं, राखी की थाल लिए होगी ,
वो गलियारी मेरे घर की, जिसमे उम्मीद तो कुछ होगी ,
जब भारी मन से बाबूजी(2), धीरे धीरे घर आएँगे ,
मेरी कुर्बानी के किस्से, वो माँ से मेरी सुनाएंगे ,
तब फक्र से माँ के आंसू भी ,तब शान से माँ के आंसू भी ,
किसी कोने में छुप जाएंगे , दिल में तो होंगे दर्द बहुत पर जुबान पर वो ना आएँगे ,
तब यहीं गुजारिश तुमसे है(2), कोई उनको समझा देना ,
था बेटा उनका वीर बहुत ,बस इतना सा बतला देना ,
ले पुनर्जन्म मैं फिर से माँ , तेरी आँगन में आऊंगा ,
ना इस पल तो कभी और सही, राखी के वचन निभाउंगा ,
कर देना मुझको माफ़ सभी ,जो याद कभी में आऊंगा ,
हूँ परवाना आज़ादी का ,इसपर कुर्बान हो जाऊँगा ,
माँ तेरी लाज बचाऊंगा , चाहे कुर्बान हो जाऊँगा ,
माँ तेरी लाज बचाऊंगा ………

एक पहलु जीवन का है माँ , जो तुम सब से अनजाना है ,
एक चेहरा बसता था दिल में , तुमने उसको समझाना है ,
वो बगियाँ में बैठे आँखों के आंसू पोंछ रही होगी ,
क्यों ख्वाब दिखाए मैंने वो ,वो मुझको कोस रही होगी ,
आँखों की काजल उसकी अब भी क्यों इस दिल में बसती है ,
क्या बोलूं अब , हूँ दूर बहुत , कुर्बान होने की मस्ती है ,
अब बहुत हुआ सो चलता हूँ , भारत माँ मुझे पुकार रही ,
लिख चूका बहुत जीवन गाथा ,ये मुझको है ललकार रही ,
है मुझे कसम इस झंडे की ,ना मैं इसको झुकने दूंगा ,
ये हवा जो मेरे देश की है , ना मैं उसको रुकने दूंगा ,
था सपना जो बचपन का माँ , वो अब पूरा हो जाएगा ,
जब झंडे में लिपटा ये तन , चौखट पर लाया जाएगा ,
जब अंतिम बार तू गोद में ले , मेरा माथा सहलाएगी ,
जब गर्व से इस दुनिया को माँ , तू मेरे किस्से बतलाएगी ,
हाँ माना, रौनक तेरे आँगन की, मेरे संग चिता पर जाएगी ,
तेरे लाख मानाने पर भी ना, जब ये आँखें खुल पाएगी ,
तब इस क़ुरबानी की कीमत, पैसो से तौली जाएगी ,
आएंगी सहानुभूति तुझ तक , जख्मों पर नमक लगाएंगी ,
तब उनको ये बतला देना ,उन लोगों को समझा देना ,
इस मिट्टी का सामान करें ,
किसे फिक्र पड़ी है अपनी ,पर इस देश का तो गुणगान करें ,
भारत माँ का सम्मान करें, इस देश का तो गुणगान करें .

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