This Hindi poem highlights the serious issue of society i.e Terrorism which is day by day increasing and diminishing the religious values of Human being. In this poem the poetess is pleading from the supernatural power i.e GOD to come back in a new incarnate form to finish the same.
कहीं कट रहे सर ,
कहीं हो रहे बलात्कार ,
तुम आते क्यूँ नहीं कृष्ण ?
लेकर फिर धरा पर एक नया अवतार ।
कहीं धर्म का हो रहा हनन ,
कहीं अधर्म का हो रहा व्यापार ,
तुम आते क्यूँ नहीं कृष्ण ?
खोलने फिर से ज्ञान रुपी द्वार ।
कहीं मनुष बन रहे राक्षस ,
कहीं राक्षस कह रहे खुद को पालनहार ,
तुम आते क्यूँ नहीं कृष्ण ?
करने राक्षसों का वध फिर से एक बार ।
मैं फिर जनम लूँगा यहीं ,
ऐसा कह कर गए थे तुम पिछली बार ,
तो लेते क्यूँ नहीं अब जनम फिर से ,
करने मासूम जनता का उद्धार ।
कुछ लोग अपनी कौम का हवाला देकर ,
कर रहे हैं भयंकर नरसंहार ,
जिसे देख ह्रदय काँप जाता है ये सोच ,
कि क्या यही है तेरा रचा सँसार ?
कलयुग की कलयुगी रौनक अब ,
पकड़ रही धीरे-धीरे मृत्यु का द्वार ,
देखो तुम्हारी बसाई इस धरा की ,
खोखली होती जाए दीवार ।
जिस “गीता” का उपदेश दिया था तुमने कभी ,
आज उसी “गीता” का हो रहा बलात्कार ,
जब धर्म परिवर्तन को ताक पर रखकर ,
अधर्मी कर रहे अपने धर्म का प्रचार ।
सब धर्मों को सामान भाव से ,
जब भेजा था तुमने यहाँ इस पृथ्वी पर ,
फिर क्यूँ अपने धर्म की दुहाई देकर ,
पापी करने लगे हैं मनमानी अक्सर ।
इसलिए तुम्हें फिर से आना होगा ,
धरकर “कल्कि” का अवतार ,
धर्म-अधर्म का पाठ पढ़ाने उनको ,
जो “गीता” , “क़ुरान”, “बाइबल” , “गुरुग्रंथ” पर लड़ते हर बार ।
कहीं जल रहे हैं तन ,
कहीं मिट रहा है आत्मा का ईमान ,
तुम आते क्यूँ नहीं कृष्ण ?
करने इस जग को एक सामान ।
कहीं बढ़ रहे हैं पाप ,
कहीं मिट रहे हैं पुण्य ,
तुम आते क्यूँ नहीं कृष्ण ?
करने जग को फिर से एक शून्य ।
कहीं बज रहे हैं जीत के शँखनाद ,
कहीं करुण ह्रदय से बोले जा रहे संवाद ,
तुम आते क्यूँ नहीं कृष्ण ?
खत्म करने ये बढ़ता आतंकवाद ॥
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