This Hindi poem highlights life of a widow when she has to face the harsh slams of people in those thirteen days when they come to condolence.
तेरह दिन के तेरह ताने ,
आ गए एक “विधवा” को निभाने ,
पहले उसके माथे की बिंदिया पोंछी ,
फिर उसकी हर चूड़ी को तोड़ दिया …..देकर बहाने ।
तेरह दिन के तेरह ताने ,
बहुत कुटिल और बहुत सयाने ,
रोना अगर आया नहीं उसको ,
तो ताने दे-देकर लगे रुलाने ।
तेरह दिन के तेरह ताने ,
तेहरवीं तक थे उसे निभाने ,
कभी किसी की “बेचारी” बनकर ,
कभी सुने की ये सब हैं -“भाग्य में लिखे फ़साने” ।
तेरह दिन के तेरह ताने ,
कपड़ों पर भी अब लग गए “सवालिया” निशाने ,
रंगों की महत्ता अब जीवन से उड़ गयी ,
समझा दिए उसे भी सफ़ेद “कफ़न” के मायने ।
तेरह दिन के तेरह ताने ,
क्यूँ तू लगी है अब “भोजन” खाने ?
घोर अपराध हुआ है तेरे जीवन में ,
इसलिए डूब जा फिर से अब …..”प्रकाश” को पाने ।
तेरह दिन के तेरह ताने ,
मर्दों से भी हो गए ये लोग ….अब परहेज़ कराने ,
“विधवा’ जीवन की यही रीत है ,
घुट-घुट के मर लो ….बिन गाए “तराने” ।
तेरह दिन के तेरह ताने ,
तेरह दिन में बदले चेहरे जाने-पहचाने ,
काली हो गयी अब छाया तेरी ,
पाँव रखते ही तेरे दहलीज़ पर …..लग गए अपने घर में ताले लगाने ।
तेरह दिन के तेरह ताने ,
कभी ना सोचा था तूने …..कि पड़ेंगे तुझे ऐसे निभाने ,
कसूर जिसमे तेरा नहीं था कुछ भी ,
पर फिर भी ये समाज लगा ……तुझे समझाने ।
तेरह दिन के तेरह ताने ,
सुन-सुन कर अब तूने अपने मन में ठाने ,
कि ये जीवन है व्यर्थ बड़ा ही ……बिन “पुरुष” के ,
जैसे कोई गीत होता है ……बिन सुर और ताने ।
तेरह दिन के तेरह ताने ,
नहीं सुनने तुझे अब और बहाने ,
निभाने को सती -प्रथा फिर से ,
क्यूँ लग गयी तू अपने गले में ……फंदा अपनाने ?
तेरह दिन के तेरह ताने ,
मत बनायो “उसे” इतना कमज़ोर …..साध निशाने ,
बंद करो ये तेरह दिनों के शोक के ताने ,
एहसास है “उसे” भी कि नहीं बाकी रहे अब उसके जीवन में ……..”साथी के तराने” ॥
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