This Hindi poem highlights the inner feelings of the Heart of a beloved where she was cursing Her Heart and blamed it to be a sinful one, which again and again let Her closer to Her Lover.
पापी मन बार-बार तेरी ओर ……… खिंचा सा जाता है ,
पापी मन सुनने को अश्लील स्वर ,तेरे मुख से ……. बहक सा जाता है ।
पापी मन कहने को , कि तू आ ना ………. मेरे दिलबर अब तो ,
ना जाने पाप करने को ,ये क्यों खुद को ……… कीचड़ में धकेल जाता है ।
पापी मन सुनने को ,तेरे दिल की तड़प ……… तुझे याद करे ,
और फिर क्यूँ आने पर तेरे , तुझे बातों में बहला ………. ये रुक सा जाता है ?
पापी मन पाप करे बार-बार ……… पापी मन उसको कहे फिर क्यूँ ये प्यार ?
पापी मन रस्में ,कसमें तोड़ ,तेरे संग ………. बेशर्म सा बन मुस्काता है ।
पापी मन बार-बार तेरी ओर ……… खिंचा सा जाता है ……….
पापी मन कब तक निभाए ……. खाई हुई सारी कसमें ?पापी मन जल-जल के ,तेरे संग ………. तपता जाता है ,
पापी मन रोज़ तुझे , अपने अंदर के आइने से ……… रु ~ ब ~ रु कराता है ।पापी मन कहता है , कि जा ना अब ……… क्यूँ सताता है मुझे ?
मगर फिर तेरे चले जाने के बाद ………. ये और भी घबराता है ।
पापी मन छुप-छुप के , तेरे दीदार की ……… झलक पाता है ।
तेरे एहसासों को ही समेट , ये खुश सा ………. फिर हो जाता है ।
पापी मन बार-बार तेरी ओर ……… खिंचा सा जाता है ……….
पापी मन को कह कि , मत कर तू ……… मेरे संग पाप इतना ,
वरना जल जाएगा , इस पाप के संग ……. कल तू भी उतना ।
पापी मन रोज़ खुद को , खुद ही से ………. गले लगाता है ,
पापी मन कश्मकश के भँवर में ……… फ़िसल सा जाता है ।
पापी मन मेरा मुझे ……… और क्यूँ डराता है ?
चलने को तेरे संग , ये फिर से ………. धुन कोई सुनाता है ।
पापी मन ज़िद ही ज़िद में ……… अपनी ज़िद पे उतर जाता है ।
पापी मन बहता-बहता सा , तेरे संग ………. और बह जाता है ।
पापी मन बार-बार तेरी ओर ……… खिंचा सा जाता है ……….
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