कई बार वादा करके भी न आये
मैं दोराहे पर खड़ी हूँ
समझ नहीं आता क्या करूँ
इन्तजार की भी कोई सीमा है
नजरें पथरा गयी है राह देखते
अब सहन नहीं होता
क्योंकि दिन तो कट जाता है
चाय की पत्तियों को तोड़ते – तोड़ते
पर रात नहीं कटती
खिड़की से सौतन की तरह
चाँद झांकता है
मुझे तडपते हुए देखता है
और चिढाता है
गोलू समझदार हो गया है
जीवन और मृत्यु का अर्थ
और दोनों में क्या फर्क
होता है समझने लगा है
अक्सरां ताने मारता है
कहता है पापा तब आयेंगे
जब गोली खायेंगे
और ताबूत में आयेंगे
शहीद कहे जायेंगे
क्या पता पूरे होंगे
या क्षत – विक्षत
आधे – अधूरे होंगे
धड होगा या महज सर होगा
जैसे हिन्दुस्तान – पाकिस्तान
और जम्मू – कश्मीर
जहाँ स्वर्ग है पर नर्क
से बदतर जिन्दगी
न दिन को चैन
न रात को नींद
खौफ के साए ऊपर
और नीचे भी
न जाने कब कौन आएगा
और जिस्म को लहू – लुहान
कर जाएगा , बेमौत बेगुनाह
बेवक्त मौत की नींद
सुला जाएगा
माँ पुत्र खो देगा
बहु पति और
बहन भाई
उन दुधमुहें मासूम बच्चों
का क्या होगा
जो समझ न पायेगा कि
जश्न हो रहा है
या मातमपुरसी
जुलुस घर से निकलकर
चौराहे फिर श्मशान
आगे – आगे हुक्मरान
पीछे – पीछे जन – सामान्य
जय जयकार की ध्वनि से
दसों दिशा गुन्ज्मान
चिता पर दहकता ताबूत
ताबूत के अन्दर शहीद
और शहीद के अन्दर
पश्याचाप की चिनगरी
गम की उठती हुई धुवाँ
कि हमें मारने से पहले
जगाया तो होता
धोके से , फरेब से , बुजदिली से
मारा न होता
इंसानियत की सारी हदें
पार कर गया
सैनिक शहीद हो गया
मुल्क के लिए , वतन के लिए
उसे तो राष्ट्रीय सम्मान मिला
तोपों की सलामी दी गयी
रायफलें दागी गईं
गोलू को क्या मिला
पितृशोक
पत्नी को क्या मिला
आजीवन वैधव्य
माँ को क्या मिला
आंसुओं का शैलाब
पिता को क्या मिला
अंतर्द्वंद – अंतर्नाद
रोज ब रोज सैनिक
शहीद होंगे पर
समझानेवाले अनेक होंगे
पूरा देश होगा , देश के लोग होंगे
हुक्मरान होंगे पर
समझनेवाले बिरले ही होंगे
दर्द को, पीड़ा को, व्यथा को
जो किसी अपनों को खो देने से
महसूस होता है सिर्फ अपनों को
औरों को नहीं |
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