Summary : some time good ,some time bad this competitive world is unique.but gives strength to everyone who become part of this beautiful world.
प्रतिस्पर्धा एवं जगत
abप्रतिस्पर्धा, के जंतर मंतर से,
बीज प्रतिस्पर्धा – प्रतिभा के जग में बिखेरते ,
bप्रतिस्पर्धा जगत के तोफे सब को मिलते l
प्रतिस्पर्धा जगत अजनबी,
aurअनजाना सा लगता है,
परन्तु समय कठिन में,
मित्र पुराना सा लगता है ।
कभी प्रतिभागियों का मेला,
कभी भीड़ में भी प्रतिभागी अकेला,
प्रबल एहसास कराता है,
यह जगत अजूबा निराला ।
कभी घोर तन्हाइयों की,
स्याही भयानक रातों में,
परम दोस्त बन जाता,
अव्यवस्था में व्यवस्था बनाकर,
प्रतिभागियों को बहुत रिझाता ।
कभी पल – पल की अस्थिरता समझकर,
कभी पल – पल का भरोसा देकर,
सबको समझाता ठहराता,
समय पर यथा संभव मदद देकर
प्रतिभागियों का हम राज़ बन जाता ।
भाषा अपनी – अपनी में,
अंदाज़ अपने – अपने में,
प्रतिभागी छोटे – छोटे राज़ खोलते
इस प्रतिस्पर्धा जगत में ।
छोटे बड़े गॉवो, कस्बों शहरो में,
पाठशाला, विद्यालयो और महाविद्यालयों में,
सरस्वती माँ के चरणों में,
पवित्र ज्ञान की गंगा में,
डुबकी लगाने आते अनेको प्रतिभागी,
थिरकते शान से, बजाते ज्ञान की बांसुरी,
और खो जाते प्रतिस्पर्धा जगत में ।
माना कभी हँसाता यह जगत,
माना कभी रुलाता यह जगत,
पर जब भी निराशा,
प्रतिभागी के हाथ लगती,
खड़ा हो तरह -चहान की ,
थामता हाथ यह जगत ।
इतनी भीड़, इतनी भागदौड़,
कुछ प्रतिभागी तो गिर जाते,
कुछ प्रतिभागी तो सम्भल जाते,
सबको निजी सहारा दे,
खड़ा करता सुसंस्कृत प्रतिस्पर्धा जगत ।
माना प्रत्येक प्रतिभागी का
अनोखा कोई ना कोई सपना है ।
इस भागदौड़ में एक विचार ही,
जो पल – पल साथ रहता,
वह ही तो अपना है ।
प्रतिभागियों की लम्बी कतारें,
आश्वासन दिलाती हैं,
नतीजा चाहे कुछ भी हो,
प्रतिस्पर्धा जगत तो,
सदैव उनका अपना है । । २
डा ० सुकर्मा थरेजा
क्राइस्ट चर्च कालेज