1- राष्ट्रीय माँ -आदर्श जीवन
अपने ढंग की वैज्ञानिक हूँ मैं माँ ,
समजाति जीवन जीती हूँ मैं माँ ,
जब छोटे बच्चे हैं मेरे ,
तब ललन पालन में उनके ,
साफ सफाई में उनके ,
लुतफ उठती मैं माँ ,
और शूद्र बन जाती मैं माँ l
जब थोड़े से बढ़े बच्चे हैं मेरे ,
तब नकारात्मक शक्तियों से उन्हें ,
बचाने क्षत्राणी बन जाती मैं माँ l
जब किशोर अवस्था -बच्चे हैं मेरे ,
विद्या अर्जित करने-व्यस्त हैं सारे ,
तब ब्राह्मण बन गुरुकुल परिवार को ,
चलाती यह अपने ढंग की वैज्ञानिक माँ l
जब लाँघ किशोर अवस्था बच्चे ,
प्रवेश करते एडल्ट हुड में ,
सिखाने को आर्थिक दान प्रदान ,
वैश्य जाति की बन जाती मैं माँ l
जाति के नाम पर जब देश में,
होते फसाद एवं दंगे ,
तब दुखी मन- मूक दृष्टा बन के ,
प्रश्न पूछती अपने से ,
यह अपने ढंग की वैज्ञानिक माँ l
यदि स्वराष्ट्र भारत को,
आदर्श जीवन पर है चलाना ,
तो क्यों न याद रखें हम ,
अनुसरणीय अपने ढंग की ,
वैज्ञानिक समजातिय माँ ?
2- प्रश्न पत्र
मैं प्रश्न पत्र ,
बनकर मूक बली का बकरा ,
गली गली कूंचे कूंचे भटकूंगा,
आज़ादी के ७१ साल बाद भी मैं ( प्रश्न पत्र) बिकूँगा,
और प्रश्न चिन्ह लगे मुझ पर,
कभी सोचा ना था l
अरे! मैं तो हूँ सबका,
भविष्य हूँ सवांरता ,
परखने हेतु शैक्षिक योग्यता,
तत्पर सेवाएं सभी को,
मैं ही तो देता l
अरे भई ! कोई तो सामने आये,
मुझे (प्रश्न पत्र) बेचने की ओछी मानिसकता,
से मेरे राष्ट्र को बचाये ,
इस संक्रामक रोग का उपचार सुझाये l
व्यक्तित्व प्रबंधन,
है उतर इस जटिल परस्थिति का,
बाह्य एवं आंतरिक विकास हो व्यक्तित्व का ,
एक यही औचित्य है ,
इस संक्रामक रोग से बचने काl
माना की व्यक्तित्व प्रबंधन कठिन कला है,
किन्तु व्यक्तित्व प्रबंधन को सीखने का साहस जुटाना,
भी तो समय से आ रही मांग की प्रक्रिया हैl
आओ स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर,
व्यक्तित्व प्रबंधन की कढ़ी को ,
जन मानस से जोड़ें ,
शैक्षिक उत्कृष्टता पाने को ,
मेहनत , ईमानदारी एवं पुरुषार्थ धृति , श्रद्धा और विश्वास ,
जैसे गुणों को व्यक्तित्व में विकसित करें l
तभी तो मैं प्रश्न पत्र बिकने से बचूँगा l
आने वाली पीढ़ियों का दुःख कुछ कम करुँगा ,
तभी तो दिखा सकेँगे गर्व से ,
हम अपनी उत्कृष्ट यूनिवर्सिटी आईआई टी , आईआई एम ,
शिक्षा मन्दिर सभी को l
–END–
सुकर्मा रानी थरेजा
अलुम्नूस आई आई कानपुर – १९८६