अंतस का तमस मिटा लूँ
पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,
तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ।
गम का अँधेरा घिरा आ रहा है,
काली अंधेरी निशा क्यों है आती?
कोई दीपक ऐसा ढूँढ लाओ कहीं से,
नेह के तेल में जिसकी डूबी हो बाती।
अंतर में प्रेम की कोई बूँद डालूं,
तब बाहर का दरिया बहाने चलूँ।
पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,
तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ।
इस दीवाली कोई घर ऐसा न हो,
जहां कोई दीया न हो टिमटिमाता।
इस दीवाली कोई दिल ऐसा न हो,
जहाँ दर्द का कोई कण टिक पाता।
गले से लगा लूँ, शिकवे मिटा लूँ,
तब बाहर की दुश्मनी मिटाने चलूँ।
पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,
तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ।
क्यों नम है आंखें, घिर आते हैं आँसू,
वातावरण में क्यों छायी उदासी?
घर में एक भी अन्न का दाना नहीं है
क्यों गिलहरी लौट जाती है प्यासी?
अंत में जो पड़ा है, उसको जगाकर,
उठा लूँ, गले से लगाने चलूँ।
पहले अंतस का तमस मिटा लूँ
तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ।
तिरंगे में लिपटा आया लाल जिसका
कि पुंछ गयी हो, सिन्दूर – लाली।
दुश्मन से लड़ा, कर गया प्राण अर्पण
घर में कैसे सब मनाएं दीवाली?
घर में घुसकर अंदर तक वार करके
दुश्मन को लगाकर ठिकाने चलूँ ।
पहले अंतस का तमस मिटा लूँ,
तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ।
धुंआ उठ रहा है, अम्बर में छाया,
तमस लील जाये न ये हरियाली।
बंद हो आतिशें, सिर्फ दीपक जलाओ,
प्रदूषण – मुक्त हो, मनाएं दीवाली।
स्वच्छता, शुचिता, वात्सल्य, ममता
को दिल में गहरे बसाने चलूँ।
पहले अंतस का तमस मिटा लूँ
तब बाहर का दीपक जलाने चलूँ।
–ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र
तिथि : 18-10-2016
वैशाली, दिल्ली, एन सी आर।