In this Hindi poem the poetess is admitting in front of Her husband that its true that she is also associated with truth in her writings and these truths are related with her extra marital affair too. So she is requesting Him to not go through with Her writings which will give Him a pain but its true too that if a real feel is not there then her words will not made an impact on others.
राणा कहे तुम जो भी लिखो …..उसमे सिर्फ सच का समावेश हो ,
झूठ से लिखे हर शब्द में ……काल्पनिकताओं के अक्सर द्वेष हों ।
राणा मेरे बोलो क्या तुम पढ़ सकोगे …..मेरे लिखे सच को दुनिया के आगे ,
जिसमे फ़साना मेरा तुम्हारा ना होगा ……और कोई दूसरा होगा …….इस दुनिया में तुमसे आगे ।
राणा मेरे कहना होता नहीं इतना आसान ……कि हम सच सह सकेंगे ,
सच को सामने रख कर …….आगे के जीवन को यूँही कह सकेंगे ।
मत उलझो राणा तुम मेरे लिखे ……..इन शब्दों के जाल में ,
हाँ ,जो लिखती हूँ मैं यहाँ पर …….उन शब्दों को रहने दो …….सच के कंकाल में ।
राणा तुम ठीक थे उस दिन ……..कि लेखक कोई यूँही नहीं आसानी से बनता ,
उसके जीवन की होती है उसके लेखों में छाया कहीं ……..जिसके चलते वो डरता है ……खींचते हुए सच की रेखा ।
राणा मेरे ,मेरी भी सारी कहानी …. है जुड़ी कहीं मेरे ही जीवन से ,
मत पलटो मेरी किताब के पन्ने …..जिसमे लिखे हुए हैं कई रंगीन सपने ।
राणा तुम्हारी हर बात को माना करती हूँ ……अक्सर मैं आँखें मींच ,
मगर बस यहीं पर आकर लिखती हूँ वही …….जो लिखने को मन लाता है खींच ।
राणा ये “सच’ …..सच में होता है बहुत बलवान ……जिसके आगे हर कोई हार जाता है ,
हाँ ये एक “लेखक” ही जानता है …..कि कड़वा सच उसके जीवन को नर्क भी बनाता है ।
राणा नहीं सोचा मैंने कभी भी …..कि क्या होगा मेरे “सच” का निर्णय …….कभी सालों बाद ,
बस इतना पता है कि जैसा भी होगा …….वो करेगा नहीं मुझे कभी भी बर्बाद ।
“सच का सामना” करने को राणा …….मैं आज भी तैयार हूँ ,
क्योंकि लिखती नहीं मैं भी कोरी कल्पनाएँ …..बस इसीलिए बर्बाद हूँ ।
बिकती जो राणा मैं भी चंद सिक्कों से …….तो आज बड़ी कोई “लेखिका” होती ,
मगर ये शब्द जो अब उपजते हैं …..तब उनकी ना ऐसी खेती होती ॥
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