समाज को बदलना होगा(Samaj Ko Badalna Hoga)- This Hindi poem describe writer’s view about the incidences of rape in our country. How the individuals and the society should react towards this menacing crime.
आज सुबह की ठंड मै कुछ ठिठुरन के साथ सिहरन भी है,
अनमने से ह्रदय में चुभते कुछ सवालों के दंश भी हैं।
क्या हमारे अंतस मैं यह झंझवात यूँ ही चलता रहेगा,
अपनी प्यारी बेटिओं का यह अपमान देश कब तक सहेगा।
कभी तो हिम्मत दिखानी होगी, कभी तो हाथ बढ़ाना होगा ,
कभी तो इन अत्याचारियों को बलात सबक सीखना होगा।
कल कुछ लोग मोमबत्तियां ले कर प्रदर्शन कर रहे थे,
ज़ोरदार आवाज़ मैं उनके नारे, दिल मैं जोश भर रहे थे;
कई नेता आये भाषण दिया और चले गए,
रह गया उस बिटिया का बेचारा बाप, हाथ मैं अपनी बेटी की तस्वीर लिए;
उसकी आंखों मैं भी कुछ आगारों से सुलगते जज़्बात रह गए थे।
क्यों हमे सुनायी नहीं देती उस बेटी की सिसकियाँ ,
अस्पताल मैं ज़िंदा रहने को कोशिश करती उसकी वो अंतिम हिचकियाँ।
क्या हमारी आँखों का पानी इतना मर गया है ,
कि आज हमारी बहु बेटियों को अपनी अस्मिता कि रक्षा के लिए दामन फैलाना पद रहा है।
अपने दुश्मनों को भी माफ़ कर देने वाले इस देश मैं,
क्यों निर्भय हो अभय के साथ नहीं जी सकती हमारी बेटियां।
कहाँ गए वो भाई जी अपनी कलाई पर रक्षा सूत्र बंधवाते थे,
अपनी बहनो कि रक्षा का वचन देते और निभाते थे।
ईश्वर ने भी कहा है कि अन्याय सहना भी अधर्म है,
तो क्या इन अपराधों पर आँख मूँद लेना अपने आप मैं एक अपराध नहीं।
आज समय आ गया है, हमें अपनी सोच बदलनी होगी,
अपने समाज कि सारी नियति बदलनी होगी।
आज हम सबको यह संकल्प करना होगा,
दुर्गा, लक्ष्मी को पूजने वाले इस देश मैं, भस्मासुरों का अंत करना होगा।
नारी का खोया सम्मान उसे वापस देना होगा,
सोच बदलनी होगी, खुद बदलना होगा, समाज को बदलना होगा ;
प्रण लेना होगा कि चाहे प्राण चले जाये , पर हमारे देश मैं अब कोई निर्भया नहीं होगी,
किसी नारी क आंचल अब मैला नही होगा।
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