संघर्ष, टूटे ख्वाब(Sangarsh,Tute Khwab)-
This Hindi poem is about life and the struggle a person has to endure to achieve his/ her aims and goals. It has a message that only those will be reach to the apex and achieve their goals, who will fight with perseverance with all situations and keep a positivism towards life and ambitions.
संघर्ष
लहरों से खेलने का शौक देख कर,
सोचा सागर किनारे घर बसाये,
मोती पाने कि चाहत देख कर,
सोचा लहरों से टकरा ही जाये,
बड़े प्यार से तिनका तिनका जोड़ ,
हमने अपने सपनों का घर बनाया,
उस घर में कई अरमानो को सजाया,
कि तभी एक दिन भंवर का एक लहर,
हमारे सपनों के घर तक दस्तक दे गया,
और पल में ही मेरा घर हो लिया,
साथ उन ज़िद्दी लहरों के,
जिनसे टकराने का हमारा इरादा था,
क्योंकि हमे नहीं सागर किनारे घर बसाना था,
हमें तो बस मोती ही पाना था,
हम भी दौड़ पडे उन लहरों के पीछे,
साथ जिनके मेरे ख्वाबों का घर जा रहा था,
लड़ पड़े उन भंवर के सैलाब से,
कभी वो हम पर, तो कभी हम उन पर,
कभी हम उन पर, तो कभी वो हम पर,
कि अचानक क्या देखते है तभी,
हार के हम से सागर लहरें,
दे गए हमें सारे मोती,
और इज़ाज़त कि सागर साहिल घर बनाये,
अपने अरमानों को सजाएं,
सभी ख्वाबों को खुल के जिए………………..
This poem is about how a girl has to sacrifice all her dreams, objectives and wishes in this male – dominated Indian society . It is about a girl who is brought up with great love and care, but after growing up, she has to change her ways and even has to reshape her thoughts according to wishes of others. So, she forgets all about her dreams and wishes and slowly learns to live without these. Situations come, where she has to endure extreme pains and there are no one near her to soothe her and care for her. Even her own family parts away from her. This is the picture of an Indian girl.
टूटे ख्वाब
कुछ ख्वाब थे मेरे,
जो ख्वाबों में ही सिमट के रह गए,
कुछ अरमाँ थे मेरे,
जो अक्श बन कर आँखों से बह गए,
ज़िन्दगी ने पल पल इतना रुला दिया,
जितनी खुशियां थी,
सब ग़मों में बदल गए,
कितने चाहत थे सिमटे सीने में,
सब दरिया से बह गए,
टूट टूट के मिटटी में मिल गए,
अल्फ़ाज़ों में क्या बयाँ करें,
अल्फाज़ ही जैसे कम पड़ गए,
कर्मों कि दास्ताँ किसे सुनाये,
सब अपने जैसे गैर से हो गए,
सूना छोड़ मेरा दामन,
मुझसे दूर कहीं ज़ुदा हो गए,
ज़िन्दगी के दौड़ में अकेले हम,
न कोई आशा, न कोई उम्मीद,
न कोई अरमान, न कोई ख्वाईश,
बिन आंसुओं के रोते हर वक्त हम,
बिन बोले बहुत कुछ बोलते हम,
बिन किये बहुत कुछ झेलते हम,
बिन मरे कितने बार मरते हम,
ख्वाब देखे बिना अब जीना सीख गए,
आंसुओं को छुपा मुस्कुराना सीख गए,
अरमानों को सीने में दफ़न कर के,
ज़िन्दगी जीना सीख गए,
ग़मों को ओढ़ के खुश रहना सीख गए,
चाहतों को खुद अपने हाथों,
गला घोंटकर मारना सीख गए,
ज़िंदगी में यूँ अकेले रहते रहते,
अकेले रहना सीख गये…।
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