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Hindi Poem: Some day Era changes
Photo credit: carygrant from morguefile.com
आओ अस्मत लुटाने चलें, अपनी आजादी की फिर से ……
वहशी दरिन्दे बनके ,हक छीन लें एक-दूसरे से ।
होगा पतन इस काल का,तो युग नया एक और होगा ….
बनेगी मिसाल इस युग की भी , जो कलयुग का अंत होगा ।
दिल नहीं लगता यहाँ अब , देख के फरेब~ए ~बसी ……
कौन किसको कब मार दे ,रही कोई सभ्यता न अब यहीं ।
क्यूँ हम पैदा हुए ,इस कलंकित युग में बोलो ?
इतने पाप किये थे कभी ,यही सोच कर इन पर रो लो ।
में वक़्त की दाद देती हूँ , जो अब तक चल रहा है ……
पापियों के पाप का फल ,देख कर पिघल रहा है ।
बाप कर रहा है ,बेटी से खुलेआम बलात्कार ……..
माँ दे रही है बेटे को ,सज़ा~ए ~मुजरिम करार ।
शादी-शुदा रिश्तों में तो ,जैसे आग लग चुकी है ……….
एक-दूसरे को छोड़ वो ,”वेश्या ” का रूप धर चुकी है ।
बीच राह में लगे हैं लोग ,जेवरों को छीनने …..
किसी भी मासूम को ,अपनी ताक़त के बल पर पीटने ।
कुचल देते हैं नौजवां ,तेज़ गाड़ी चला मासूमों को ………
भाग जाते हें छोड़ कर ,अकेला उन्हें तड़पने को।
खुले आम अस्मत लुट रही है ,इस आजादी की यहीं ……
जिसे पाने की खातिर ,कितने देशभक्तों को उम्र क़ैद सहनी पड़ी ।
गर्भ में मार देते हैं कन्या ,समझ कर उसको कलंक अपने जीवन पर ……
ऐसॆ तो मर्द ही नज़र आयेंगे ,आने वाले युग में ज़मीं पर।
ईश्वर भी काँपता होगा ,ऐसे व्याभिचार को देखकर …..
जहाँ मर्द ही मर्द में कामना जगाये ,हवस के तार छेड़कर ।
नशा “मदिरा ” और “पान” का ,क्या खूब रंग जमा रहा है ………
निशाने लगा शादियों में बन्दूक के ,लहू से खुशियाँ मना रहा है ।
दोष किसी सरकार का नहीं ,अपनी अंतरात्मा का इस बार है ……
जो इतनी बेरहमी से पाप करके भी ,इस बार निर्विचार है ।
बनते रहो वहशी ……..रचते रहो प्रदूषित संसार ,
कभी तो युग बदलेगा फ़िर से, जब कहानी बनेंगे हमारे आज के विचार ।।
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