डाले थे कुछ ख़्वाब मोहब्बत की धूप में , झट से झुलस गये
बटोर के रखना चाहा तो धोखे के तूफ़ान में उड़ गये
सूख चुकी हैं आँखों की सुराहियाँ
जब से इस के पेंचे चांदनी से लड़ गये |
टूट के बिखरते हैं अब हर शाम को
जब से किसी के ज़ाम थे बन गए ,
रूठना भी नसीब न हुआ , ऐसे इलज़ाम हम बन गए
मगरूर तो थे वो मजबूर न थे वो
ना जाने कब फ़िज़ूल हम गये |
भीगना चाहा किसी के रंग में
दर्द के रंगों में रंग दिये गये ,
जीना चाहा किसी के ख्वाब में
ख़्वाब तोड़ दिए गए,
कुसूर क्या था हमारे ग़ज़ल सी मोहब्बत का
आशिकी से हम क्यों दोस्त बना लिए गए?
कश्ती पे आना चाहा तो समंदर खिसक गये
नींदो में जीना चाहा तो नींदे बिछड़ गयीं
बेबस से हो गए हैं मेरे ये जज्बात
बयां जो करना चाहा तो अल्फ़ाज़ हे रूठ गये |
ज़माना नहीं है किसी के ग़मों का मलहम
ऐ वक़्त तूने भी क्या किया हसीं सितम
जिन्हे चाहा था हमने खुद से भी ज्यादा
वही हमारे दिल से आज उतर गये |
बरस जा नैनन बरस जा झूठे हैं सपने है हँस के बरस जा
छलक जा जम के छलक जा
कहते हैं आँसू पतझड़ सी झड़ जा ,
वादे टूटे हैं फिर क्यों थामे हैं इनको
पलकों पे सज क के इनसे बिछड़ जा,
मत कर सवाल पत्थर के काठ से
कुसूरवार तो ह हमको हे बना गये |
शमा नहीं जो फूँक से मिटा दिए जाए
नशा नहीं अगली दफ़ा फिर से चढ़ा लिये जाए
सच्चे इश्क़ को ठुकरा कर जो तू चला क़दर
ता उम्र तन्हा रहे , इसी दुआ में अब मेरे हाथ हैं उठ गये |
बहुत खूब काफ़िर के चेहरे से नक़ाब के परदे गिर गये
तू लायक नहीं मेरे मोहबबहत के बेवफा समझ गये
दो लफ्ज़ भी ना बोल पाया तू तो इस क़दार कमजोर था
हँस कर करुँगी शुक्रिया अब अगर रुसवा भी कर गये |
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