तन्हाई और मेरा साथ 1 (Loneliness and me part 1)
जिंदगी में एक पल ऐसा भी था,
हम चलते रहे, मंजिल मिलती रही|
ना रुके कही, ना मुड़े कही,
ना सुना किसीका, ना पूछा कभी,
हम अपने रस्ते बना, यूँ चलते रहे,
और सपनो को अपने सजाते रहे|
कभी इस गली, कभी उस गली,
कोई कही और चली, कोई मंजिल से मिली|
इस गलियों की भूलभुलया में, भटका भी कभी,
तो देर हुवी पर मंजिल मिली|
जब मंजिल मिली तो नए सपने बने,
नए सपने बने और पुरे हुवे कुछ अधूरे रहे|
कुछ पाने का सिंसाला यूँ बढ़ता गया,
मैं अपनों से दूर निकलता गया|
अब तन्हाई तो हम से सरमाने लगी.
मेरे जिंदगी में इस कदर वो आने लगी|
तन्हाई और मेरा साथ 2 (Loneliness and me part 2)
पन्ना पलट अभियंता बन गए,
मेरे अपनों के सपने पूरे होगए,
उनके घर खुसी तो आने लगी,
पर तन्हाई मुझसे सरमाने लगी,
मेरी जिंदगी में इस कदर वो आने लगी|
वक़्त गुजरा और नौकरी मिली,
कुछ परेशानियों की हल मिली,
पर वो सुकून ना मिला,
सुकून जो दोस्तों के साथ में था,
सुकून जो पापा के दिए पैसे में था,
शौख तो पूरे उन्ही पैसों से होता थे,
अब तो सिर्फ जरूरते पूरी होती है|
वो सुकून तो फिर ना मिले,
हम पाने की कोसिस तो करते रहे,
बस इतना समझ कर चलते रहे,
जिंदगी में ख़ुशी एक छोटी रौशनी भी देती है,
अगर समझ कर हम उससे अंगारे चले|
तन्हाई और मेरा साथ 3 (Loneliness and me part 3)
नजाने कितनी दूर ये किनारा,
दूर खड़ा वो सयद हमारा,
अपनों के राह में कितने दिन गुजारा,
अब एक पल की तन्हाई मेरी मौत का इसारा|
कस्ती को मेरे ना चाप्पू का सहारा,
ऊपर अस्मा में काले बादल का पहरा,
यहाँ समुन्द्र में विशाल लहरों का छाया,
सायद जिंदगी छोटी और दूर किनारा|
किस्मत ने आज नसीब का दामन थामा,
काले बदल हटे दूर हुवा छाया,
मेरी कस्ती से कुछ दूर अब किनारा,
पर वहाँ न कोई खड़ा, न कोई हमारा|
किनारे पर फिर तन्हाई का सहारा,
दूर समुन्द्र में मौत का साया,
फिर भी मैंने कस्ती समुन्द्र में उतरा,
समुन्द्र में मौत ही सही पर कुछ तो हमारा|
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