सवाल
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जो खुद एक सवाल है
वो खुद से क्या सवाल करे
अजीब ह ये ज़िन्दगी
हर सवाल का जवाब ह
और फिर हर जवाब ही सवाल है .
इन अनगिनत सवालो में
और सवालो क जवाब में
डूबी हुयी हुई हू ऐसे
जहा वक़्त का नहीं कोई अंदाज़ है.
“अंदाज़” से ही हमे याद आया
कभी हमे तेरे इसी अदा पर हमे प्यार आया
छोटी होती थी वो मुलाक़ाते
लम्बी होती थी वो बाते
दूर होकर भी दुरी का एहसास नहीं था
कोई घडी ऐसी नहीं थी जब तू पास नहीं था .
वक़्त है ये वक़्त जो
कब जवाबो को सवाल बना दे
और सवालो को एक जवाब
विश्वास तो दूर
उसका मेरे एहसास भी नहीं होने देता .
ठहरा हुआ से ये वक़्त
झूटी उमीदो को जगाता है
फिर पानी के बुलबुलों की तरह फुट कर
पानी में ही मिल जाता है.
वीरान हो चुकी इस ज़िन्दगी में
क्या कभी तारे सितारे झिलमिलायेगे
या सुनी हो चुकी ये ज़िन्दगी –
युही वक़्त क साथ ढल जाएगी.
नहीं होती तो – विश्वास
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कुछ यादे है अनकही
कुछ सपने है अनसुनी
कुछ मंजिले है ऐसी
जिन पर चलना नहीं आसन .
फिर भी चलते जा रही
नहीं पता रुकना कहा है ,
नहीं पता जाना कहा है ,
नदी की धरा जैसे
ये ज़िन्दगी भी बढती जा रही है .
लेकिन न उमंग है इसमें ,
न कोई तरह है इसमें
बस गम है , जिसको कही छुपा लिया ह हमने .
जब कभी अकेले होती
हर गम फिर मेरे साथ होता
नफरत भी होता , प्यार भी होता
और कुछ अनकही और अनसुनी सी बाते भी होती ,
यादे भी होती , कुछ सपने भी होते ,
सिर्फ एक पल क लिए कोई चीज़ अगर साथ नहीं होती तो – विश्वास .
ज़िन्दगी एक पहेली
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कल एक झलक जिंदगी की देखि,
वो मेरी राहो में गुनगुना रही थी .
फिर ढूंडा उसे इधर उधर ,
वो आँख मिचोली कर मुस्कुरा रही थी .
एक अरसे बाद आया मुझे करार ,
वो सहला के मुझे सुला रही थी .
हम दोनों क्यों खफा है एक दुसरे से ,
मैं उसे और वो मुझे समझा रही थी .
मैंने पूछ लिया ,
क्यूँ दर्द दिए कमबख्त तुने ?
वो बोली , मैं ज़िन्दगी हु पगली
तुझे जीना सीखा रही थी.