था क्या वहाँ , रुकने के लिए ……. जो मैं रुकता ?
ना उसकी हँसी , ना उसकी अदा ……… जो ये मन ठुकता ,
था क्या वहाँ …… था क्या वहाँ ?
सालों से उसको इशारे किए ……. चोरी-चोरी नज़ारे किए ,
वो जान कर भी , गर अनजान बने ………. तो क्यूँ उसके लिए , फिर ये दिल जले ?
था क्या वहाँ …… था क्या वहाँ ?
सीने में हलचल होती थी अक्सर ……. उसके आने की आहट से ,
कनखियों से उसको निहार ………. तड़प बुझती थी एक ज़माने से ,
था क्या वहाँ …… था क्या वहाँ ?
मिलने को उससे होके बेचैन ……. ये दिल चल पड़ता था वहीँ लिए नैन ,
जितने पल भी मिलते थे सुकूँ के ………. निहार उसे करता था चैन ,
था क्या वहाँ …… था क्या वहाँ ?
उसके आने पे दौड़ा करता ……. खुद को गिरने से रोका करता ,
वो हवा सी जब थी गुजरती ………. साँसों में उसकी महक घोला करता ,
था क्या वहाँ …… था क्या वहाँ ?
मेरी मदमस्त जवानी निखरती ……. उसकी झलक बेकाबू करती ,
बिन कुछ कहे , बिन कुछ सुने ही ………. हम दोनों के मन की नियत बिगड़ती ,
था क्या वहाँ …… था क्या वहाँ ?
वो भी तो मेरे करीब से गुज़र कर ……. एक इशारा धीरे से करती ,
मैं बेबस सा उसके हर इशारे पर ………. ये सोच कुछ ना कहता , कि वो मुझसे डरती ,
था क्या वहाँ …… था क्या वहाँ ?
आज भी उसके आने पर ……. ये दिल धड़क-धड़क के शरमाया ,
वो बैठ मुझे हौले से निहारे ………. ये देख मुझे और पसीना आया ,
था क्या वहाँ …… था क्या वहाँ ?
मगर फिर अचानक ये दिल हुआ उदास ……. सोचा इसने कि क्यूँ करता ऐसी आस ?
वो चली गई आज फिर से कुछ कहे ………. मेरे दिल की सदा बिन सुने ,
था क्या वहाँ …… था क्या वहाँ ?
मैं भी उठ के तब जाने लगा ……. उसके रवैये से ये दिल बहुत दुखा ,
और तब सोचा मैंने कि था क्या वहाँ ………. रुकने के लिए , जो मैं रुकता ?
था क्या वहाँ …… था क्या वहाँ ?
था क्या वहाँ , रुकने के लिए ……. जो मैं रुकता ?
ना उसकी हँसी , ना उसकी अदा ……… जो ये मन ठुकता ,
था क्या वहाँ …… था क्या वहाँ ?
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