डर के आगे “जीत” …..हर बार नहीं होती ,
डर के आगे “हार” से ……तकरार बड़ी होती ।
जब भी ये सोचकर …हमने कदम बदाया ,
कि आज “डर” रहे हैं ….तो कल तो मिलेगी माया ।
मगर उस माया से ……बदनामी बड़ी होगी ,
क्योंकि “डर” इस बार सही था …..इसलिए हर बार “हार” होगी ।
“डर” पर चलने से पहले …..”डर” की जाँच करायो ,
सच्चा है या झूठा है ….इसकी तह तक जाओ ।
सच्चे “डर” के आगे ……सदा “जीत” बड़ी होगी,
मगर झूठे “डर” के आगे ……सिर्फ “हार” ही “हार” होगी ।
बन गया है आजकल ये फ़ॉर्मूला …..कि “डर” के आगे “जीत” है ,
चल पड़े हैं युवा आजकल …..समझे इसी को नया गीत हैं ।
जान जोखिम में डालकर …..”जीत” पाने की चाहत में ,
जान गँवा देते हैं अपनी ….जब “डर” भाग जाता है ….उनके हाथ से ।
गर विचार पहले ही ……उन्होंने किया होता ……इस “डर” के आगे का ,
तो हार-जीत खुब~ब~खुद समझ जाते ….लेने को फैसला किसी राह का ।
“डर” बड़ा बलवान होता ……जो इसमें हार नहीं होती ,
मगर “हार” है तभी तो …….”जीत” की चाहत होती ।
हार-जीत हैं …..जीवन जीने के …….दो ऐसे पहिये ,
जिसमे हर पल हम …घूम रहे हैं ……बनके क्षत्रिय ।
कभी “जीत” का होता पलड़ा भारी …..तो कभी “हार” कुचली जाती ,
कभी “हार’ अपना सर ऊँचा किए …..हमें एक नया सबक दे जाती ।
प्रेमी-युगल ये सोच कर घर से भागें …..कि “डर” के आगे “जीत” होगी ,
मगर उनका “डर” झूठा था …..इसलिए उनकी “जीत’ में बदनामी होगी ।
इसलिए “जीत” को ऐसा बनायो ……कि “डर’ उसके आगे नतमस्तक हो ,
“हार” की बेड़ियों को तोड़ …..हर बार “जीत”को दस्तक दो ।
नयी चेतना और स्फूर्ति पाने को ……हम “जीत’ कर मंजिल को पाएँगे ,
“हार” का नामोनिशान मिटाने …….हर “हार” से लड़ते जायेंगे ।
याद रखो कि …..”डर” के आगे “जीत” पाने को …..हम हर रोज़ सुर से सुर मिलायेंगे ,
बस “डर” हमारा गर सच्चा होगा …..तो हम भी नयी मंजिलें पा जाएँगे ॥
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