तुम इतनी अच्छी क्यूँ हो ?
देने तुम्हे एक जवाब ,
उस सवाल का ,
जो पूछा था तुमने उस रोज़ बार-बार ,
कि ” तुम इतनी अच्छी क्यूँ हो ? ”
लिखने लगी मैं आज फिर से ,
शब्दों को सिर्फ तुम्हारे लिए ,
बताने तुम्हे कि सिर्फ मैं नहीं ,
होती है हर स्त्री बहुत अच्छी ,
अगर देखो उस एक पाक निगाह से ।
मगर बन जाती है वो दूसरे ही पल ,
इतनी खराब ,
जब एहसास होता है उसे ,
किसी की गन्दी नीयत का ,
तब रौंद देती है वो ये धरती-आकाश ,
और खींच लेती है पाताल में उसे ,
जिसने दर्शाया था अपनी घटिया सोच को ,
उसके समक्ष ये कहकर ………..
कि ” तुम इतनी अच्छी क्यूँ हो ? ”
अच्छी हूँ मैं ……….. जानते हो क्यूँ ?
क्योंकि मैंने तुम्हे सदा ही ,
एक उज्जवल दृष्टि से देखा ,
अच्छी हूँ मैं ……….. जानते हो क्यूँ ?
क्योंकि मेरी है एक मर्यादित रेखा ,
मेरे लिए तुम एक परपुरुष हो ,
जिसका स्थान केवल मेरे मस्तिष्क में है ,
अच्छी हूँ मैं ……….. जानते हो क्यूँ ?
क्योंकि मेरा ह्रदय सदा ही बाधित है ।
इसलिए मत बहकायो मुझे ,
अपनी मीठी चुपड़ी बातों से ,
मैं जैसी हूँ मुझे वैसे ही रहने दो ,
मत सताओ मुझे अँधेरी रातों में ,
मुझे नहीं रचना एक और इतिहास ,
अपनी और तुम्हारी कहानी का ,
मुझे नहीं देना कोई भी जवाब ,
इस उलझी दुनियादारी का ,
मत पूछो मुझसे बार-बार कि ” तुम इतनी अच्छी क्यूँ हो ? ”
सिर्फ मैं ही नहीं ………
तुम भी तो हो एक अच्छे इंसान ,
मेरी नज़र में ,
फिर क्यूँ बनते हो एक शैतान ?
दुनिया वालों की नज़र में ,
क्यूँ करते हो मुझसे ऐसी बातें ?
जो निराधार और व्यर्थ हैं ,
खुद ही सोचो भला कि कैसे ,
हम दोनों का संगम मुमकिन है ।
ये तुम्हारी नहीं ,
ये तुम्हारी उम्र का कसूर है ,
जो स्त्री के जिस्म की खुशबू लेने को ,
एक मद में चूर-चूर है ,
बिन ये सोचे ……. बिन ये जाने ,
कि ऐसे मद का अंत बुरा होगा ,
जब टूटेगा भ्रम इस सपने से ,
तब आने वाला जीवन तबाह होगा ,
इसलिए मत करो सवाल कि ” तुम इतनी अच्छी क्यूँ हो ? ”
मैं क्षमाप्रार्थी बन के जियूँ ,
ऐसी उलझन में मुझे मत बाँधो ,
मैं बिन सपने देखे पलकें मूँदूँ ,
ऐसे मेरे जीवन में मत झाँको ,
जाने दो मुझे ,
वहाँ ………. जहाँ ,
मेरी मंज़िल मुझे खोज रही ,
मैं इतनी अच्छी क्यूँ हूँ ?
ये सोच मुझे अब रोक रही ।
तुम्हारी वासना को जानकर ,
मेरा ये ह्रदय ……… अब टूट रहा ,
क्यों औरत इतनी बेबस है ?
ऐसे शब्दों को अब सोच रहा ,
मैं सौ बार तुम्हे समर्पित होती ,
गर मेरा तुमसे कोई मेल था खाता ,
परन्तु बिन मेल के अब ,
मुझे उत्तर भी कोई ना सुझाता ,
मत पूछो इसलिए मुझसे अब कि ” तुम इतनी अच्छी क्यूँ हो ? ”
मुझे नहीं पता खुद को भी ,
तुम्हारे द्विअर्थोँ का मतलब ,
कि क्यूँ तुमने मुझको था चुना ?
अपना झूठा चक्रव्यूह रचकर ,
” मैं इतनी अच्छी क्यूँ हूँ ? ”
ये सोचते गर तुम …….
थोड़ा पहले खुद से ,
तो जान जाते मेरा भीतर मन ,
जिसमे बसते हैं सिर्फ सच के पहरे ॥
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