This Hindi poem is dedicated to all those people who lost their life in the disaster of Uttrakhand. This includes the local people and the pilgrims who have came here for worshipping the four famous dhams..
1)
ना जाने क्यों बरस पड़े,
वो इन्द्र देव इन पहाड़ो पर |
नष्ट हुआ हर ज़रा-ज़रा ,
दरार पड़ी दीवारों पर ||
देख इस जल का जलजला ,
बिजली कौंध पड़ी नजारो पर |
छोड़ गया इस बर्बादी को,
वो न जाने किन सहारों पर ||
राहत सामग्री की जगह देखो,
नेता आए जहाजों पर |
नीचे का मंजर देखा तो ,
लाशें पड़ी थी दरवाजो पर ||
सदा भरी रहने वाली घाटी मैं ,आज
न कोई रस्ते पे था,न चौराहों पर |
आगे कुवां था तो पीछे खाई|
भक्त खड़े थे दोराहों पर ||
तब हरित वस्त्र में देव आये ,
बचाए लोग हजारों पर |
देश के नेता खेद जताने ,
आये थे जहाजों पर ||
२)
उत्तराखंड में प्रलय का ,
न जाने ये कैसा मंजर था |
पर्वत सारे टूट गए,
बस चारो और समंदर था ||
उन भक्तों की व्यथा क्या समझु ,
मैं तो घर के अन्दर था |
मेरे चारो और भोग विलास ,
पर उनके सामने तबाही का मंजर था ||
कहीं सड़क,तो कहीं घर नष्ट हुए,
और बस आगे बढता जल बवंडर था |
रात के इस प्रकोप मैं ,
बचा वही जो मंदिर के अन्दर था ||
नेता आये खेद जताने, पर
हमें पता था क्या उनके अन्दर था |
पर पांच साल के ये इद का चाँद,
आज भी जहाज के अन्दर था ||
बचाने आये वो शरहद वीर,
देशभक्त जिनके अन्दर था |
उनके लिए तो क्या सुख-दुःख,
सब एक सा मंजर था ||
3) हे इश्वर क्या माया तेरी,
काल रूप सी छाया तेरी |
इन बड़े बड़े पहाड़ो को,
सदा डसेगी ये काया तेरी ||
लगता कोई पापी आया जो,
भूल गया त्रिनेत्र की माया तेरी |
तभी तो कोई मदिरा तो कोई मॉस,
गली मैं लाया तेरी ||
हे इश्वर माफ़ करना जो भूल हुई,
हम तो है बस छाया तेरी |
ऐसा प्रकोप फिर न दिखाना,
देखनी है बस भोले सी काया तेरी ||
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