“वो बसे हैं मेरे रोम रोम में”
एक हलचल सी है मन में,
ना जाने क्यों
सिहरन-सी है अंग-2 में,
ना जाने क्यों
ना कहीं धुऑ है और
ना कहीं आग की लपटें,
फिर भी आग लगी है
मेरे तन-बदन में |
ना जाने क्यों
दिल ने कहा-
इश्क कि तोहे आग लगी-2
कैसे समझाऊं तुम्हें
वो बसे हैं तेरे रोम-2 में !
मन की बैचेनी को रोक ना पाई,
ना जाने क्यों
सुझ-बूझ सब खोई,
मन भी बावंरा हो गया,
ना जाने क्यों
ना देखी अगल-बगल, ना ही उपर-नीचे,
बस अपनी धुन में रही मगन,
और निकल पडी मैं उनके पीछे-पीछे,
ना जाने क्यों
दिल ने कहा-
इश्क कि तोहे आग लगी-2
कैसे समझाऊं तुम्हें
वो बसे हैं तेरे रोम-2 में !
पैरों को सांस लेने नहीं दी
कडकडाती ठंड को पास नहीं आने दी
सूख गये थे होंठ
पर मुस्कुराहट को कम नहीं होने दी
ना जाने क्यों
दिल ने पूछा – लेकिन कब तक
जब तक- वो पलट के देख ना ले
और देखो वो पलटे, रूके भी
और पूछे मुझसे-
कहॉं तक जायेंगी आप ?
मैं खामोश रही,
दिल की धडकन तेज हुई
ना जाने क्यों
लेकिन पलट कर मैं बोली-
जी, कौन हैं आप ?
तभी दिल ने कस के लिया ठहाका
और कहा-
इश्क कि तोहे आग लगी!
कैसे समझाऊं तुम्हें
वो बसे हैं तेरे रोम-2 में !
मेरे पायलों के सरगम में आप,
कानों के झुमके,
नाक कि नथिया में आप,
सुबह की पहली किरण में हो आप
शाम की ढलती किरण में हो आप |
रात की अंधेरी-तन्हाई में आप,
चांद की चांदनी में –
मेरी खूबसुरती को निहारते हुए आप,
दिल ने कहा-
इश्क कि तोहे आग लगी
कैसे समझाऊं तुम्हें
वो बसे हैं तेरे रोम-2 में !
आप के सिवा किसी और का इंतजार नहीं,
जीना सीखा है आप से,
आप की ही यादों में मरना भी गंवारा |
जो आप नहीं, तो प्यार नहीं,
प्यार नहीं, तो जिंदगी नहीं,
और आपकी किट ने –
ये जिंदगी आप के नाम कर दी |
अब चाहे आप मेरी जिंदगी सवार दो,
या फूल खिलने से पहले मेरी बगिया उजाड दो,
मैं तो हर जन्म में –
आपकी ही रहूंगी मेरे पिया |
हॉं मेरा दिल कह रहा है-
इश्क कि मोहे आग लगी !
आप बसे हैं मेरे रोम-2 में !
–END–
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